
पवित्र कुरान व बाइबल से किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती परंतु गीता को संकीर्ण मानसिकता से देखने वाले की बुद्धि पर केवल तरस ही खाया जा सकता है। अन्य धर्मग्रंथों की भांति गीता को किसी विशेष उपासना पद्धति से नहीं जोड़ा जा सकता जैसा कि वाइको व उनके हिमायतियों ने किया है। गीता हमारा अघोषित राष्ट्रीय ग्रंथ है जो पंथ, जाति, संप्रदाय से परे है। यह केवल भारत की ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की थाती है। ज्ञात रहे श्रीकृष्ण के श्रीमुख से जब गीता ज्ञान प्रस्फुटित हुआ उस समय समस्त दुनिया की सेना कौरव और पांडवों के खेमों में बंटी हुई धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र के मैदान में खड़ी थी। पूरा विश्व समुदाय गीता ज्ञान का साक्षी और विरासत का हकदार है।

अमरीका के प्रसिद्ध दार्शनिक विल डयून्ट, हेनरी डेविड थोरो (1813-1862), इमर्सन से लेकर वैज्ञानिक राबर्ट ओपन हीमर तक सभी गीता ज्ञान से आलोकित हुए। थोरो स्वयं बोस्टन से 20 किलोमीटर दूर बीहड़ वन में, वाल्डेन में एक आश्रम में बैठकर गीता अध्ययन करते थे। इमर्सन एक पादरी थे, जो चर्च में बाइबिल का पाठ करते थे। परन्तु रविवार को उन्होंने चर्च में गीता का पाठ प्रारंभ कर दिया था। अत्यधिक विरोध होने पर उन्होंने गीता को 'यूनिवर्सल बाइबल' कहा था। उसने गीता का अनुवाद भी किया था। वैज्ञानिक राबर्ट ओपनहाबर ने 16 जुलाई, 1945 को अमरीका के न्यूमैक्सिको रेगिस्तान में जब अणु बम का प्रथम परीक्षण किया गया तो उसने विस्फोट से अनन्त सूर्य में अनेक ज्वालाओं को देखकर उसे गीता के विराट स्वरूप का दर्शन हुआ तथा वह त्यागपत्र देकर गीता भक्त बन गया था। इंग्लैण्ड में संत कार्लायल, टी.एम. इलियट तथा विश्वविख्यात इतिहासकार सर आरनोल्ड टायनवी जैसे विद्वान गीता से प्रभावित हुए। संत कार्लायल से अमरीकी विद्वान इमर्शन से अद्भुत भेंट थी। संत ने इमर्शन से पूछा कि वे अमरीका से भेंट स्वरूप क्या लाए। उत्तर में भावपूर्ण हो उसने गीता की एक प्रति भेंट की, जिसके उत्तर में कार्लायल ने भी गीता की एक प्रति भेंट दी। टी.एस. इलियट ने गीता को 'मानव वांग्मम की अमूल्य निधि' है बताया संसार की 28 सभ्यताओं के विशेषज्ञ टायनवी ने स्वीकार किया कि अणुबम से विध्वंस की ओर जाते पाश्चात्य जगत को पौर्वात्य, भारतीय तत्वज्ञान की ओर जाना पड़ेगा, जो सभी के अन्दर ईश्वर की मानता है। (विस्तार के लिए देखें, ए स्टडी ऑफ हिस्ट्री)।
मृत्यु शैय्या पर पड़े जर्मनी के प्रसिद्ध विद्वान शोपनहावर को गीता पढऩे से जीवनदान मिला। उसने माना कि 'भारत मानव जाति की पितृभूमि है।' विश्व प्रसिद्ध जर्मन विद्वान कांट, जो भूगोल तथा नक्षत्र विधा का अध्यापक था, की गीता पढ़कर जीवन की दिशा बदल गई तथा वह दर्शन का पंडित बन गया। मैक्समूलर ने मुक्त कंठ से गीता की आराधना की। नोबल पुरस्कार विजेता फ्रेंच विद्वान रोमां रोलां ने माना कि गीता ने यूरोप की अनेक आस्थाओं को धूल-धुसरित कर दिया तथा मानव को नवदृष्टि दी। स्वामी सुबोध गिरी ने गीता के विश्वव्यापी प्रभाव की महत्वपूर्ण विवेचना की (देखें, डा. हरवंश लाल ओबराय, समग्र गीता दर्शन की सार्वभौमिकता-खण्ड पांच, बीकानेर, 2012)
राष्ट्रीय आन्दोलन में गीता की भूमिका
भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में क्रांतिकारियों की प्रेरणा, चेतना तथा आत्मबलिदान का स्रोत रहा। खुदीराम बोस तथा मदन लाल धींगरा गीता हाथ में लेकर देश के लिए बलिदान हो गए। महर्षि अरविन्द ने स्वयं गीता को भारत माता के चित्र सहित छपवाया। भारत में ब्रिटिश सरकार को इसके वर्णन में कहीं बम बनाने का फार्मूला होने का शक लगा। जांच अधिकारी नियुक्त किए गए। बम की तरीका तो नहीं निकला पर 'आत्मबल का बम अवश्य' प्रकट हुआ। संक्षेप में गीता ने जीवन के विभिन्न पक्षों की समस्याओं का निराकरण प्रस्तुत किया तथा देश की भक्ति, आत्मगौरव तथा आत्मसम्मान की भावना पैदा की।
गीता भारतीय संविधान में
1950 में जब भारत का संविधान बना तब इसमें भारतीय संस्कृति तथा दर्शन के 22 उद्बोधक चित्र भी थे। इसमें एक चित्र संविधान के नीति-निर्देशक तत्व में भगवान श्रीकृष्ण का
गाण्डीवधारी अर्जुन को गीता उपदेश देते हुए भी थी। उल्लेखनीय है कि 10 सितंबर, 2007 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय में भारत की केन्द्र सरकार को संविधान के अनुच्छेद 51 (क) के अंतर्गत राष्ट्र के ग्रन्थ को घोषित करने को कहा गया तथा इसके लिए भारतीय जीवन पद्धति तथा राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रेरणास्रोत गीता को बतलाया। यह भी कहा कि भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य बनता है कि वह इस राष्ट्रीय धरोहर की रक्षा करे और इसके आदर्शों के अनुकूल चले (देखें स्वामी सुबोध गिरि, पूर्व उद्धरित पृ. 157,158)
महात्मा गांधी का स्पष्ट मत था कि गीता सभी शिक्षण संस्थाओं में पढ़ाई जानी चाहिए। क्या यह देश की प्रबुद्ध पीढ़ी को नहीं लगता कि भारतीय संविधान में शब्द ग्रन्थ के रूप में गीता को घषित किया जाना चाहिए तथा भारत के प्रत्येक शिक्षा संस्थान में यह पाठयक्रम का अनिवार्य भाग होनी चाहिए।
- राकेश सैन
मोबाईल - 097797-14324
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