
हेडगेवार मन में राष्ट्र भक्ति की चेतना लेकर पैदा हुए थे। जिसकी झलक उनके बाल्य काल में नागपुर के सीताबर्डी किले पर फहराते यूनियन जैक को हटाकर भगवा ध्वज को फहराने के लिए सुरंग खोदने का प्रयास से मिलने शुरू हो गये थे। प्राईमरी शिक्षा के दौरान नील सिटी हाईस्कूल में 22 जून 1897 को क्वीन विक्टोरिया के 60 वें राज्यारोहण दिवस के अवसर पर मिली मिठाई को खाने के बदले यह कहते हुए कूड़े में फेक दिया था कि भोंसला राज्य का विनाश करनेवाले ब्रिटीश की मिठाई क्यों खायें? 1907 में दशहरा में रावण वध के अवसर पर अपने मित्र भगोरे और डीवर के साथ वंदेमातरम् गाया बाद में केशवराव हेडगेवार ने रावण के मरने का वास्तविक अर्थ क्या है विषय पर भाषण देते हुए ब्रिटिशों की तुलना रावण से करते हुए अति उग्र भाषण दिया। जिसके कारण उनके पीछे गुप्तचर लगा दिया गया। 1908 में नीलसिटी हाई स्कूल में ब्रिटीश अधिकारीयों के निरीक्षण के दौरान स्कुल के सभी कक्षाओं के छात्रों से वंदेमातरम् का नारा लगाकर स्वागत करवाया। इस जुर्म का माफी माँगने के बदले स्कूल से निकलना स्वीकार किया, जिसके कारण राष्ट्रीय विद्यापीठ से संबद्ध यवतमाल के विद्यागृह नामक स्कूल में नामांकन कराना पड़ा। राष्ट्रीय विद्यापीठ सरकारी स्कूलों से निकाले गये क्रांतिकारियों को शिक्षा प्रदान करने के लिये महर्षि अरविन्द,डॉ. रासबिहारी बोस,सुरेन्द्रनाथ बंदोपाध्याय आदि के द्वारा संचालित किया जाता था। बाद में क्रांतिकारियों के इस विद्यागृह को अंग्रेजों ने बंद करा दिया तो खुद पढ़ते हुए राष्ट्रीय विद्यापीठ जो द नेशनल काउंसिल ऑफ ऐजुकेशन बंगाल के नाम से जाना जाता था कि प्रवेशिका परीक्षा पास हुए। इसी बीच मुजफ्फरपुर बम कांड में फँसे क्रान्तिकारी खुदीराम बोस तथा अलीपुर बम कांड में फँसे सत्येन्द्रनाथ बसु, वारींद्र कुमार घोष, हेमचन्द्र दास कानूनगो, उपेंद्रनाथ बनर्जी, उपेंद्रनाथ बंधोपाध्याय, अविनाश इंद्र नंदी, शैलेन्द्रनाथ बसु, कन्हाई लाल, उल्लास कर, सुशील कुमार सेन आदि 34 तरुण देशभक्तों के प्राणों की रक्षा के लिए धन संग्रह का कार्य भी किया।
संघ का गठन क्यों
हमारी असंगठित अवस्था के कारण हिन्दू समाज सैकड़ों वर्षों से विदेशियों की सत्ता के नीचे पद दलित हुआ। हमारे पास जन बल, धन बल, शस्त्र बल, शास्त्र बल सब कुछ था पर हम एक राष्ट्र के अंग हैं जिसके लिए मेरा जीवन लगना चाहिये यह भावना नहीं थी। इस कारण हमारा समाज परिभूत हो गया। इसके लिए समाज के नस-नस में राष्ट्रवाद की उत्कट भावना भरकर उस भावना से संपूर्ण समाज अनुशासित, संजीवित और संगठित कर उसे दिग्विजयी राष्ट्र के रूप में खड़ा किया जाय। इसी संकल्प से संकल्पित होकर 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शुभारंभ डॉ.हेडगेवार द्वारा किया गया।
क्रांतिकारियों का संगठन अनुशीलन समिति
1910 में नेशनल मेडिकल कॉलेज कलकत्ता में नामांकन पढ़ाई के साथ-साथ क्रान्तिकारी संगठन में अनुभव के लिए लिया। क्रान्तिकारी श्री रामलाल बाजपेई ने अपने आत्मचरित्र में लिखा है ''श्री केशवराव हेडगेवार,आरएसएस के संस्थापक को श्री दाजी साहब बुटी से कुछ आर्थिक मदद दिला कर शिक्षा की अपेक्षा बंगाल के क्रान्तिकारी संगठन अनुशीलन समिति के संस्थापक पुलिन बिहारी दास के हाथ के नीचे क्रांति एवं संगठन करने के लिए भेजा गया'' आगे लिखते है कि छुट्टीयों में वापस आते समय केशव राव के ऊपर यह जिम्मेदारी थी कि दो-तीन सौ रुपये का रिवाल्वर अपने नागपुर के क्रांतिकारियों के लिए लेते आयें। प्रसिद्ध क्रान्तिकारी श्री त्रिलोकनाथ चक्रवर्ती ने अपनी पुस्तक जेल में तीस वर्ष के पृष्ठ 159 में लिखते हैं कि केशवराव के महाविद्यालय के ही एक छात्र नलिन किशोर गुहा उनको तथा नारायण राव सावरकर को अनुशीलन समिति में लाये थे।
प्रथम विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश सरकार की ओर से युद्ध क्षेत्र में डॉक्टरों की बहाली होने लगी तो लड़ाई का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त कर आगे इसका अंग्रेजों को भगाने में उपयोग की कल्पना से डॉ.हेडगेवार, डॉ.नी.स.मोहरिर आदि ने डॉ. सोहरावर्दी खां से मिलकर अपना नाम लिखवाया पर क्रान्तिकारीयों के ब्लैक लिस्ट में नाम होने के कारण अनुमति नहीं दिया गया।
मेडिकल की डिग्री लेकर 1916 में नागपुर वापस लौटकर मध्यभारत में निकट सहयोगी भाजु कावरे और अप्पा जी जोशी वर्धा के साथ मिलकर क्रान्तिकारी गतिविधियाँ प्रारंभ कर दिया। पंजाब और बंगाल के क्रांतिकारियों से संपर्क कर गंगा प्रसाद पांडे के नेतृत्व में 20 क्रांतिकारियों का पथक बनाया। इस पथक का केंद्र श्री चाँदकरण शारदा के सहयोग से अजमेर बनया ताकि राजस्थान के विभिन्न रियासतों को अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए तैयार किया जा सके। इस पथक की धन और अस्त्र-शस्त्र की की व्यवस्था डॉ. हेडगेवार गुप्त रूप से अपने शुभेक्षुओं के सहयोग से करते थे। प्रथम विश्व युद्ध के समय बहुत सी ब्रिटिश सेना देश से बाहर चली गयी थी इस अस्तव्यस्तता का लाभ उठाने के उद्देश्य से डॉ. हेडगेवार ने 'स्वतंत्रता की घोषणा पत्र' की कल्पना को डॉ. मुंजे और अन्य नेताओं के सम्मुख रखा पर समर्थन नहीं मिला। इस घोषणापत्र का विचार था कि एक ही समय में अनेक देशों के समाचारपत्रों में एक ही साथ प्रमुख नेताओं का वक्तव्य की 'हिन्दुस्थान स्वतंत्र हो गया' का समाचार प्रकाशित करवाना था। पूरी दुनिया में हिंदुस्तान की आजादी की गुंज सुनाई दे।
क्रन्तिकारी गतिविधियां के कारण दिन रात गुप्तचर पीछे लगे रहते थे, अंग्रेजों का ध्यान भटकाने हेतु अहिंसावादी कांग्रेस के मंच से सक्रिय हो गये ताकि क्रन्तिकारी गतिविधियां सुगमता से चल सके। इसी बीच दिसम्बर 1919 को अंग्रेजो ने पूरे हिन्दुस्थान में शांति दिवस मानाने का आदेश दिया पर नागपुर के नेताओं ने सरकार निषेध दिवस मानाने का आवाह्न किया इसके पर्चे पर डॉ. हेडगेवार के हस्ताक्षर मौजूद है।
मध्य प्रान्त की राजनीतिक ताकत लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के अनुयायियों डॉ. बा.शि.मुंजे,श्री नीलकंठ राव उधोजी,श्री नारायण राव अलेकर, श्री नारायण राव वैद्य,बैरिस्टर मोरू भाऊ अभ्यंकर, श्री गोपाल राव ओगले, बैरिस्टर गोविन्द राव देशमुख,डॉ. चोलकर, श्री भवानी शंकर नियोगी,डॉ. ना.भा. खरे, श्रीविश्वनाथ राव केलकर,डॉ. परांजपे आदि के हाथ में थी। इन्हीं में से सोलह लोगों ने मिलकर राष्ट्रीय मंडल बना रखी थी। इसका कांग्रेस के उपर इतना प्रभाव था की जो बात मंडल निश्चित करता था कांग्रेस उसे ही स्वीकार करके चलती थी। डॉ. हेडगेवार इसके सदस्य नहीं थे पर डॉ. मुंजे के प्रेम कारण इसके बैठकों में जाते थे। उस समय तक कांग्रेस केवल वैधानिक और शांतिपूर्ण तरीके से साम्राज्यान्तर्गत स्वारज अथवा औपनिवेशिक स्वराज की बात करती थी पर डॉ हेडगेवार शुद्ध स्वतंत्रता की सोच रखते थे साथ ही उनका मानना था कि देश की आजादी के लिए कोई भी मार्ग अपनाया जाय सब जायज है। इस वैचारिक मतभेद के कारण डॉ. हेडगेवार ने राष्ट्रीय मण्डल के श्री बोबड़े, श्रीविश्वनाथ राव केलकर,श्री बलबंत राव मण्डेलकर,श्री चोरघड़े आदि के सहयोग से 'नागपुर नेशनल यूनियन' बनाई जिसमें बाद में डॉ. ना.भा. खरे भी शामिल हो गये। नागपुर नेशनल यूनियन ने नागपुर के व्यंकटेश नाट्यगृह में एक सभा करके विशुद्ध स्वतंत्रता ही ही हमरा उद्देश्य है की घोषणा करने वाला प्रस्ताव पारित किया। यूनियन के चार लोग कांग्रेस में इस प्रस्ताव को स्वीकार कराने हेतु गांधीजी से मिले। पर गांधीजी ने यह कहते हुए टाल दिया की स्वराज में सबकुछ आ जाता है। बाद में इसी नागपुर नेशनल यूनियन ने दिसंबर 1920 के कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन की स्वागत समिति के माध्यम से विषय समिति के पास कांगे्रस का ध्येय हिन्दुस्थान में प्रजातंत्र की स्थापना कर पूँजीवादी देशों के चंगुल से विश्व की मुक्ति है यानि पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा करने का प्रस्ताव जमा किया था जिसे डॉ. हेडगेवार ने खुद तैयार किया था पर स्टियरिंग कमिटी ने उस समय उसे उपहास करते हुए अनुपयुक्त समझकर ठुकरा दिया।
असहयोग आन्दोलन में जेल
असहयोग आन्दोलन की घोषणा की गई तो डॉ.हेडगेवार ने गाँव-गाँव शहर-शहर घूमकर अपने ओजस्वी एवं देशभक्तिपूर्ण भाषणों द्वारा हजारों लोगों को असहयोग आंदोलन में भागीदारी के लिए प्रेरित किया। नागपुर के जिलाधिकारी जेम्स इरविन ने 23 फरवरी 1921 को डॉ.हेडगेवार के जोरदार प्रचार और भाषणों से घबरा कर उनके सभा एवं भाषण करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। 31 मई 1921 में ब्रिटिश सरकार ने राजद्रोह का अभियोग लगाकर मुकदमा दर्ज कर दिया। डॉ.हेडगेवार के स्टेटमेंट को पढ़कर मजिस्ट्रेट ने कहा 'दिस स्टेटमेंट इस मोर सेडिसिअस दैन हिज स्पीचÓ। जज स्मेली ने राजद्रोह का निर्णय करते हुए एक साल तक भाषण पर प्रतिबन्ध लगाते हुए एक एक हजार का दो जमानत और एक हजार का मुचलका लिखकर माँगा। पर डॉ.हेडगेवार ने मुचलका भरने से इंकार कर दिया। इस पर जज स्मेली ने एक वर्ष का सश्रम कारावास का दण्ड सुना दिया। 19 अगस्त 1921 को डॉ.हेडगेवार को नागपुर के अजनी जेल में बंद कर दिया गया। लगभग एक वर्ष तक बंदी रहने के बाद डॉ.हेडगेवार 12 जुलाई 1922 को जेल से रिहा हुए। इस अवसर पर नागपुर के व्यंकटेश नाट्य गृह में डॉ. ना.भा.खरे की अध्यक्षता में स्वागत सभा हुआ। इसमें पंडित मोतीलाल नेहरु, हाकिम अजमल खां आदि ने भाषण करते हुए डॉ.हेडगेवार का अभिनंदन किया। डॉ.हेडगेवार के जेल से निकलने के पहले ही 5 फरवरी 1922 को चौरी-चौरा कांड के कारण असहयोग आन्दोलन बंद हो गया था। 1922 में डॉ.हेडगेवार प्रान्तीय कांग्रेस में चुने गये और सह मंत्री नियुक्त हुए।
नमक सत्याग्रह
जब नमक सत्याग्रह हुआ तो सैंकड़ों तरुण स्वयंसेवकों को सिर्फ भावावेश में न आकार बल्कि विचार पूर्वक आन्दोलन में शामिल होने के सलाह के साथ अनुमति प्रदान की। मध्य प्रान्त की कार्यकारिणी के सदस्य के नाते 1928 के कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में भी शामिल हुए। 26 जनवरी 1930 को जब कांग्रेस ने देश भर में स्वतंत्रता दिवस मनाने का निर्णय लिया तो संघ ने सभी शाखाओं में संघस्थान पर 26 जनवरी 1930 को संध्या 6 बजे भगवा राष्ट्र ध्वज फहराया और समारोहपूर्वक देश की स्वतंत्रता पर कार्यक्रम कर इसका अभिनन्दन किया।
1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन
महात्मा गाँधी के नेतृत्व में 9 अगस्त को आन्दोलन बिना किसी तैयारी को शुरू कर दिया गया अंग्रेज ये जानते थे इसलिए उन्होंने सभी प्रमुख कांग्रेसी नेताओं को एक ही जगह पर गिरफ्तार कर लिया। स्वभाविक है की बिना किसी नेतृत्व का यह आन्दोलन बिखर गया। संघ के संस्थापक के पद चिन्हों पर चलते हुए बिना बैनर लिए हुए अनेक स्वयंसेवक खादी पहनकर आन्दोलन में कूद पड़े। कुछ स्वयंसेवकों ने विदर्भ में सामानांतर सरकार बनाया। अनेकों स्वयंसेवकों ने दिल्ली मुजफ्फरनगर रेलवे ट्रैक पर कब्जा जमाते हुए उसे तहस नहस कर डाला। मेरठ में अंग्रेजो के खिलाफ आन्दोलन करते हुए अनेक स्वयंसेवक पुलिस की गोलियों के शिकार बने। अंग्रेजों के जुल्मो सितम से भयभीत हुए बिना अनेक स्वयंसेवकों ने कांग्रेसी आन्दोलनकारी नेताओं को अपने घरों में शरण दी। अरुणा आसफ अली और जयप्रकाश नारायण दिल्ली के स्वयंसेवक लाला हंसराज के घर,अच्युत पटवर्धन तथा साने गुरूजी पुणे के संघ चालक भाऊ राव देशमुख के घर, नाना पाटिल औंध के संघचालक पंडित सातवेलकर के घर में भूमिगत रहकर आन्दोलन को चलाया। '42' की बिजली के नाम से मशहूर नेत्री अरुणा आसफ अली जिनके उपर अंग्रेजों ने 5000 रुपये का इनाम रखा था के शब्दों में '1942 के दौरान जब आन्दोलन दिशाहीन हो गया तब मै देल्ही आरएसएस के प्रान्त प्रचारक लाला हंसराज गुप्ता के घर में भूमिगत रूप से छिप गई यहाँ तक की उनके नौकर चाकर को भी यह पता नहीं था। वे मेरा पूरा ध्यान रखते थे।''
- दैनिक हिंदुस्तान 1967
3 मई 1942 का सीआईडी रिपोर्ट कहती है-संघ का निर्णय है किसी भी का विरोध की परवाह न करते हुए अपने पैरो पर खड़ा होगा यह संभव नहीं है कि स्वराज भीख में मांगने से मिलेगा बल्कि ताकत से मिलेगा। 1943 ई. की इंटेलिजेंस रिपोर्ट के अनुसार आरएसएस का सर्वोच्च उद्देश्य अंग्रेजो को भारत से भगाना है।
भारत रत्न डॉ. भगवान दास के शब्दों में ''मैं निश्चित रूप से जानता हूँ की आरएसएस के स्वयंसेवकों ने मुस्लिम लीग की भारत सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों को खत्म कर लाल किले पर पाकिस्तानी झंडा फहराकर भारत में अपनी सरकार की घोषणा की योजना के बारे में नेहरु और पटेल को पहले अगाह कर दिया था। अगर ये देशभक्त साहसी युवकों ने नेहरु और पटेल को सही समय पर नहीं बताया होता तो आज संपूर्ण भारत पाकिस्तान होता और लाखों हिन्दू कत्ल कर दिए जाते। जो बचते उनका बलात् इस्लाम में धर्मपरिवर्तन कर दिया जाता और भारत एक बार फिर गुलाम हो जाता।''
'स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के बूट पॉलिश करने से ले कर उनके बूट को पैर से निकाल कर उससे उनके ही सिर को लहूलुहान करते हुए मरम्मत करने तक के सब मार्ग मेरे स्वतंत्रता प्राप्ति के साधन हो सकते हैं। किसी भी मार्ग के लिए मेरे मन में तिरस्कार का भाव नहीं है। मैं तो इतना ही जानता हूँ की अंग्रेजों को निकालकर देश स्वतंत्र कराना है।'
- डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार
'स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लीजिये पर हाथ में आरएसएस का बैनर न लेकर बल्कि कुर्ता पैजामा और खादी टोपी पहन कर।'
- मा. माधव सदाशिव गोलवलकर गुरूजी
. - राकेश सैन
great one
ReplyDeletethanks ji
ReplyDeleteVery Nice
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