Saturday, 16 September 2017

रोहिंग्या मुस्लिम, पीडि़त या पीड़ देने वाले


अराकान रोहिंग्याज साल्वेशन आर्मी के 
हथियारबंद कार्यकर्ता (ऊपर) घुसपैठिए
म्यांमार से आरहे रोहिंग्या मुसलमानों के बारे बहुत प्रचार किया जा रहा है कि वे पीडि़त हैं, बौद्ध लोग उन पर बहुत अत्याचार कर रहे हैं और वहां की सेना नरसंहार में जुटी इत्यादि इत्यादि। माना कि इन आरोपों को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता परंतु रोहिंग्याओं के खिलाफ वहां पर एकाएक इतनी नफरत पैदा यूं ही नहीं हुई है। रोहिंग्याओं ने बहुत कुछ ऐसा किया है जिससे उनके खिलाफ उस बौद्ध समाज में हिंसा फैली जिस समाज में कीड़े मकौड़ों को मारना भी वर्जित है। म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय का एक वर्ग पिछले कुछ समय से ऐसी गतिविधियों में शामिल रहा है जो प्रश्न खड़ा करती हैं कि ये रोहिंग्या मुसलमान पीडि़त हैं या पीड़ देने वाले।
साऊदी अरब से निकली कट्टरपंथी बहावी विचारधारा वहां काफी समय से अपनी जड़ें जमाने के प्रयास में है। इस विचारधारा को मानने वाले न तो किसी देश की सीमा, न संविधान और न ही दूसरी आस्था के प्रति कोई सम्मान रखते हैं। यह विचारधारा पूरी दुनिया को इस्लाम के हरे रंग में रंगने को वाजिद है। इसी विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए साऊदी अरब व अनेक आतंकी संगठनों की मदद से पिछले कुछ सालों में ही म्यांमार के रखाइन प्रांत में मदरसों, मजारों का प्रसार हुआ है।
म्यांमार पर काम करने वाले पश्चिम के विद्वान जिम्स प्लीडेड बताते हैं कि इसी विचारधारा का असर है कि रोहिंग्या मुसलमान एक अलग देश बनाना चाहते हैं और इस काम के लिए आतंकी गतिविधियों का संचालन करते हैं। हरक्का-अल-यकीन न केवल म्यामांर बल्कि भारत में भी आतंकी गतिविधियां चला रहा है। इसके हमले में म्मयांमार के 9 से अधिक पुलिस कर्मी मारे जा चुके हैं। भारत के गृह मंत्रालय को गुप्तचर एजेंसी रिसर्च एंड एनेलाइसेज विंग (रॉ) व अन्य खुफिया एजेंसियों ने एडवाइजरी जारी की है कि वह रोहिंग्याओं को लेकर सावधान रहे। एडवाइजरी के अनुसार, अराकान एंड रोहिंग्या सालवेशन आर्मी (एआरएसए) को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई फंडिंग करती है। इसके तार हाफिज सईद, जमात-उद-दावा, लश्कर-ए-तय्यबा, जाकिर मूसा जैसे आतंकियों व आतंकी संगठनों से जुड़े हैं। तभी तो रोहिंग्यिाओं को लेकर जाकिर मूसा ने दुनिया को धमकाया है कि अगर इनको कुछ हुआ तो बाकी दुनिया की खैर नहीं। इन आतंकियों ने रोहिंग्याओं को भी हथियार उठाने को कहा है। इन रोहिंग्याओं के वकील न भूलें कि बंग्लादेश की प्रधानमंत्री ने अपने भारत दौरे के दौरान डोजियर देकर इन संगठनों के प्रति भारत को सावधान किया है।
रोहिंग्या मुसलमानों के अनेक संगठन म्यामांर में आतंकी गतिविधियों में संलिप्त रहे हैं और इसी कारण वहां की सेना को इनके खिलाफ अभियान शुरू करना पड़ा। भारत के बंगाल राज्य के बर्धमान जिले में हुए बम विस्फोट के मुख्य आरोपी खालिद मोहम्मद जो वर्मा से ही आया मुसलमान था, ने पूछताछ के दौरान माना है कि पाकिस्तान इस इलाके में आतंक फैलाने के लिए फंडिंग व ट्रेनिंग दे रहा है। म्यांमार में यही आतंकी संगठन स्थानीय जनता पर हमले करते हैं, उन्हें आतंक का शिकार बनाते हैं और रोहिंग्या समाज इनको शरण देता है। इसी कारण काफी समय से म्यामांर में रोहिंग्याओं के खिलाफ नफरत की भावना पैदा होती रही है। कोई भी समाज नहीं चाहता कि उस पर आतंकी हमले हो और कोई एक वर्ग केवल इसलिए देश को तोडऩे की बात करता हो कि उनकी उपासना पद्धति बाकी समाज से भिन्न है।
पिछले दिनों इन रोहिंग्याओं ने म्यांमार की सेना की एक टुकड़ी पर हमला किया था। हमलावरों का आका सऊदी अरब में है। इन हमलावरों और उनके समर्थकों के विरुद्ध म्यांमार की सेना कार्रवाई कर रही है। कहा जा रहा है कि अब तक 200 रोहिंग्या अतिवादी और नागरिक मारे जा चुके हैं। इसलिए वे लोग जान बचाने के लिए बांग्लादेश व अन्य देशों की ओर भाग रहे हैं, लेकिन एक मुस्लिम बाहुल्य देश बांग्लादेश उन्हें अपने यहां आने से रोक रहा है। इसका भी कारण है कि बांग्लादेश के जिस-जिस इलाकों में यह घुसपैठिए रह रहे हैं वहां की बौद्ध आबादी पर हमले कर रहे हैं। इन घुसपैठियों ने कुछ समय पहले ही बांग्लादेशी बौद्ध मठों को आग लगा दी और स्थानीय निवासियों पर हमले किए।
केवल आज की बात नहीं, अतीत में भी रोहिंग्या मुसलमानों द्वारा बौद्धों पर तरह-तरह के जुल्म का लंबा इतिहास रहा है। इसकी बुनियाद मुख्य रूप से 15वीं शताब्दी में पड़ी जब बंगाल के सुल्तान जलालुद्दीन मोहम्मद शाह थे। उन्होंने रखाइन से भागकर आए वहां के शासक सू मून की मदद की थी। जलालुद्दीन से सैन्य मदद पाकर सू मून ने 15वीं सदी के मध्य में रखाइन के राजाओं को हराया, लेकिन सुल्तान ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए रखाइन में बड़ी संख्या में मुस्लिमों को भेज दिया। इसके बाद लगभग 100 साल तक बंगाल में पुर्तगाल के लुटेरों का आतंक रहा और इससे बचने के लिए लोग बर्मा के निकटवर्ती इलाके रखाइन में जमते गए। जैसे ही रखाइन में मुसलमानों की संख्या ठीक-ठाक हुई, उन्होंने बौद्धों पर तरह-तरह के अत्याचार करने शुरू कर दिए। बाद में जब अंग्रेजों का शासन आया तो उन्होंने 'बांटो और राज करो' की अपनी पुरानी नीति पर चलते हुए बौद्धों और रोहिंग्या मुसलमानों को आपस में उलझाए रखा। अरसे तक अत्याचार सहने के बाद अब बौद्ध भी हिंसक हो गए थे। अंग्रेजों के जाने के बाद एक बार फिर रोहिंग्या मुसलमानों ने जमकर उत्पात मचाया। एक अनुमान के मुताबिक महीनों तक चले दंगे में हजारों बौद्धों का कत्ल हुआ। भारत में बहस छिड़ी है कि इन घुसपैठिए रोहिंग्याओं को अपने यहां शरण दी जाए परंतु भारत में भी इनके चलते जम्मू-कश्मीर, बिहार, बंगाल में अनेक तरह की हिंसक घटनाएं हो चुकी हैं। जम्मू-कश्मीर में कई रोहिंग्या आतंकी गतिविधियों में लिप्त पाए गए हैं। अभी हाल ही में मस्जिद के बाहर जेएंडके के जिस पुलिस इंस्पेक्टर को भीड़ ने पीट पीट कर मार डाला उसके पीछे भी इन्हीं लोगों का हाथ बताया जा रहा है। इन लोगों को देश में शरण देना अपनी खुद की शांति भंग करना और हमारे बच्चों की आने वाली नस्लों को खतरे में डालने जैसा होगा।

- राकेश सैन
मो. 097797-14324

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