गोपालकों के देश में कुछ बुद्धिजीवी गऊ माता का मांस खाने के अधिकार की चर्चा में व्यस्त हैं तो दुनिया इसके गुणों से निरंतर लाभ उठा रही है। हमारे यहां युगों से पंचगव्यों जैसे कि गौदूध, गौमूत्र, मट्ठा, लस्सी व गोबर से विभिन्न बीमारियों के ईलाज किए जाते रहे हैं और अब आधुनिक विज्ञान ने भी गऊ माता की चमत्कारिक क्षमता को साबित कर दिया है। नई शोध में सामने आया है कि गऊ माता अपने शरीर में विशेष एंटीबॉडीज उत्पन्न करती है जिसकी दवा से एड्स रोधी टीके व दवा विकसित की जा सकती है।
भारत युगों से आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति से न केवल स्वस्थ होता आया है बल्कि इसके साइड इफेक्ट नहीं होने के चलते यह पद्धति अधिक लाभदायक भी साबित होती रही है। आयुर्वेद में पंचगव्य का अपना महत्त्व है। इसकी बहुत सी दवाएं गाय के दूध, गौमूत्र, दही व लस्सी के साथ ली जाती है। गऊ माता के चिकित्सीय गुण सर्वमान्य और किसी से छिपे भी नहीं हैं परंतु देश के लिए खतरनाक बात है कि देश में हो रही गऊ हत्या के चलते गौवंश निरंतर कम हो रहा है। स्वदेशी गाय जिसके चिकित्सीय गुण व उत्पादों की गुणवत्ता अधिक है उसकी तो कई नस्लें लुप्तप्राय: होने की कगार पर खड़ी है। दूसरी ओर देश में चर्चा छिड़ी है कि गाय को खाना लोगों का संवैधानिक अधिकार है। निरंतर कम हो रहा गोवंश और इसकी हत्या की वकालत अपने आप को पतन के गड्ढे में धकेलने के बराबर ही है। आवश्यकता है कि देश में संविधान अनुसार गोरक्षा, पालन-पोषण और संवरधन का काम शुरू हो। जब विदेशी वैज्ञानिक यह काम कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं ?
अमरीकी शोधकर्ताओं का कहना है कि एचआईवी से निपटने के लिए वैक्सीन बनाने में गाय काफी मददगार साबित हो सकती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि प्रतिरक्षा के तौर पर ये जानवर लगातार ऐसे विशेष एंटीबॉडीज प्रोड्यूस करते हैं जिनके जरिए एचआईवी को खत्म किया जा सकता है। ऐसा माना जा रहा है कि कॉप्लेक्स और बैक्टीरिया युक्त पाचन तंत्र की वजह से गायों में प्रतिरक्षा की क्षमता ज्यादा विकसित हो जाती है। अमरीका के नेशनल इंस्टीच्यूट्स ऑफ हेल्थ ने इस नई जानकारी को बेहतरीन बताया है।
एचआईवी एक घातक प्रतिद्वंद्वी है और इतनी जल्दी अपनी स्थिति बदलता है कि वायरस को मरीज के प्रतिरक्षा सिस्टम में हमला करने का रास्ता मिल जाता है। एचआईवी अपनी मौजूदगी को बदलता रहता है। एक वैक्सीन मरीज के रोग प्रतिरोधक सिस्टम को विकसित कर सकती है और लोगों को संक्रमण के पहले स्टेज पर बचा सकती है।
इंटरनेशनल एड्स वैक्सीन इनिशिएटिव और द स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीच्यूट ने गायों की प्रतिरक्षा क्षमता को लेकर टेस्ट शुरू किया। एक शोधकर्ता डॉक्टर डेविन सोक ने बीबीसी न्यूज को बताया, 'इसके परिणाम ने हमें हैरान कर दिया।' डॉक्टर सोक ने कहा, यह बेहद उन्मुक्त कर देने वाला मौका था। इंसानों में ऐसे एंटीबॉडी विकसित होने में करीब तीन से पांच साल लग जाते हैं। उन्होंने कहा, 'यह बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके पहले यह इतना आसान नहीं लग रहा था। किसे पता था कि एचआईवी के इलाज में गाय का योगदान होगा।'
'नेचर' नाम के जर्नल में प्रकाशित नतीजों में बताया गया है कि गाय की एंटीबॉडीज से एचआईवी के असर को 42 दिनों में 20 फ़ीसदी तक खत्म किया जा सकता है। प्रयोगशाला परीक्षण में पता चला कि 381 दिनों में ये एंटीबॉडीज 96 प्रतिशत तक एचआईवी को बेअसर कर सकते हैं। एक और शोधकर्ता डॉक्टर डेनिस बर्टन ने कहा कि इस अध्ययन में मिली जानकारियां बेहतरीन हैं। उन्होंने कहा, 'इंसानों की तुलना में जानवरों के एंटीबॉडीज ज्यादा यूनीक होते हैं और एचआईवी को खत्म करने की क्षमता रखते हैं।'
आज विश्व 21 वीं सदी में प्रवेश कर चुका है और बढ़ती जनसंख्या के लिए भोजन के साथ चिकित्सा व स्वास्थ्य सबसे बड़ी चुनौती के रूप में उभर कर सामने आए हैं। लोगों की बदल रही जीवन पद्धति से नई-नई बीमारियां अपना स्थान बना रही हैं। एक बीमारी ठीक नहीं होती कि दूसरी नई बीमारी प्रकाश में आजाती है। इसके अलावा सामान्य बीमारियां भी सभी देशों की सरकारों के स्वास्थ्य बजट को परेशान कर रही हैं। बीमारियां बढ़ रही हैं एक परेशानी कम थी कि दूसरी परेशानी ने इस रूप में जन्म ले लिया कि एलोपैथी अपना असर खो रही है। आज विश्व में एलोपैथी की सार्थकता पर चर्चा होना शुरू हो चुकी है और वैकल्पि चिकित्सा पद्धति पर विचार किया जाने लगा है।

- राकेश सैन
मो. 097797-14324
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