Sunday, 17 September 2017

विपक्ष जी, शहीदों को तो माफ कर दो

विकृत सेक्युलरिजम से सताए हिंदू समाज के पूर्वज व देश के शहीद भी अब इस जमात की जद में हैं। गौरक्षा और इसके लिए बलिदान हमारी गौरवशाली परंपरा रही है परंतु अब धर्मनिरपेक्षता वादी कालिख लिए तैयार हो रहे हैं इसे रंगने को। उत्तराखंड सरकार हरिद्वार स्थित कटारपुर नामक गांव में मौजूद गौरक्षक शहीद स्मारक पर गौतीर्थ बनाने जा रही है। 1918 को हिंदुओं ने गौरक्षा के लिए न केवल यहां संघर्ष किया बल्कि अपने जीवन का बलिदान किया और कईयों को कालापानी की सजा तक भुगतनी पड़ी। इस घटना के सौ वर्ष पूरे होने पर उत्तराखण्ड सरकार इन शहीदों को अपनी ओर से श्रद्धांजलि देना चाहती है परंतु गौरक्षा को गाली और सांप्रदायिकता के रूप में परिभाषित करने वाला विपक्ष इसका विरोध कर रहा है। 
इस जगह को गौ तीर्थ बनाने का प्रस्ताव पिछले महीने हुई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारियों, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत और पर्यटन सतपाल महाराज के बीच बैठक में रखा गया था। 1918 में हरिद्वार से 10 किलोमीटर दूर ग्राम कटारपुर के मुसलमानों ने बकरीद पर सार्वजनिक रूप से गौहत्या की घोषणा की। वैसे उस समय गौहत्या सामान्य बात थी परंतु हिंदुओं की धर्मस्थली में कभी ऐसा नहीं हुआ था। हिन्दुओं ने ज्वालापुर थाने पर शिकायत की। वहां के थानेदार मसीउल्लाह तथा अंग्रेज प्रशासन की शह पर ही यह आयोजन हो रहा था। दूसरी तरफ हरिद्वार में शिवदयाल सिंह थानेदार थे। उन्होंने हिन्दुओं को हर प्रकार से सहयोग देने का वचन दिया। अत: हिन्दुओं ने घोषणा कर दी कि चाहे जो हो पर गोहत्या नहीं होने देंगे। 17 सितंबर, 1918 को बकरीद थी। हिन्दुओं के विरोध के कारण उस दिन तो कुछ नहीं हुआ पर अगले दिन मुसलमानों ने पांच गायों का जुलूस निकालकर उन्हें पेड़ से बांध दिया और कत्ल की तैयारी करने लगे। दूसरी ओर हनुमान मंदिर के महंत रामपुरी जी महाराज के नेतृत्व में सैकड़ों हिन्दू युवक भी अस्त्र-शस्त्रों के साथ तैयार थे। समाज के बहुत से लोगों ने मुसलमानों को समझाने व प्रशासन की मदद लेने का प्रयास किया परंतु उन्हें सफलता हाथ न लगी। गुस्से में आकर युवाओं ने आयोजन स्थल पर धावा बोल दिया और सभी गाय छुड़ा लीं। इस प्रयास में कई लोग मारे गए व गायों का कत्ल करने वाले सिर पर पांव रख कर भाग लिए। इस मुठभेड़ में अनेक हिन्दू भी हताहत हुए। महंत रामपुरी जी के शरीर पर चाकुओं के 48 घाव लगे, अत: वे भी बच नहीं सके।
 
प्रशासन को गऊ हत्यारों के वध का पता लगा, तो वह सक्रिय हो उठा। हिन्दुओं के घरों में घुसकर लोगों को पीटा गया। महिलाओं का अपमान किया गया। 172 लोगों को थाने में बन्द कर दिया गया। फिर भी हिन्दुओं का मनोबल नहीं टूटा। कुछ दिन बाद अमृतसर में कांग्रेस का अधिवेशन होने वाला था। गुरुकुल महाविद्यालय के प्राचार्य आचार्य नरदेव शास्त्री 'वेदतीर्थ' ने वहां जाकर महात्मा गांधी जी को सारी बात बतायी, पर गांधी जी किसी भी तरह मुसलमानों के विरोध में जाने को तैयार नहीं थे। परंतु महामना मदनमोहन मालवीय जी का हृदय पीड़ा से भर उठा। उन्होंने गोभक्तों पर चलने वाले मुकदमे में अपनी पूरी शक्ति लगा दी।
जैसा कि अक्सर होता है, पुलिस प्रशासन को जैसे ही गऊ हत्यारों के वध का पता लगा, तो वह सक्रिय हो उठा। हिन्दुओं के घरों में घुसकर लोगों को पीटा गया। महिलाओं का अपमान किया गया। 172 लोगों को थाने में बन्द कर दिया गया। फिर भी हिन्दुओं का मनोबल नहीं टूटा। कुछ दिन बाद अमृतसर में कांग्रेस का अधिवेशन होने वाला था। गुरुकुल महाविद्यालय के प्राचार्य आचार्य नरदेव शास्त्री 'वेदतीर्थ' ने वहां जाकर महात्मा गांधी जी को सारी बात बतायी, पर गांधी जी किसी भी तरह मुसलमानों के विरोध में जाने को तैयार नहीं थे। परंतु महामना मदनमोहन मालवीय जी का हृदय पीड़ा से भर उठा। उन्होंने गोभक्तों पर चलने वाले मुकदमे में अपनी पूरी शक्ति लगा दी। इसके बावजूद 8 अगस्त, 1919 को न्यायालय द्वारा घोषित निर्णय में चार गोभक्तों को फांसी और हरिद्वार के थानेदार शिवदयाल सिंह सहित 135 लोगों को कालेपानी की सजा दी गयी। 
8 फरवरी, 1920 को उदासीन अखाड़ा, कनखल के महंत ब्रह्मदास (45 वर्ष) तथा चौधरी जानकीदास (60 वर्ष) को प्रयाग में, डा. पूर्णप्रसाद (32 वर्ष) को लखनऊ एवं मुक्खा सिंह चौहान (22 वर्ष) को वाराणसी जेल में फांसी दी गयी। चारों वीर 'गोमाता की जय' कहकर फांसी पर झूल गये।  इस घटना ने केवल गौरक्षा को लेकर ही भारतीय समाज को जागृत नहीं किया बल्कि यह घटना स्वतंत्रता संग्राम में आहूति का कारण बनी जिसकी प्रचंड ज्योति 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता की प्रखर अग्नि बन कर जली जिससे आज हमारा देश सदियों की परतंत्रता के बाद स्वतंत्र हवा में सांस ले रहा है। इतिहास के इस गौरवशाली पन्ने को कलंकित करने का किसी को अधिकार नहीं है और कम से कम राजनीति करते हुए शहीदों को तो संकीर्णता की लपेट में लेने से बचना ही चाहिए।

- राकेश सैन
मो. 097797-14324

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