Sunday, 17 September 2017

सैप्टिकटैंंक नुमा श्रीमुख

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के प्रति कांग्रेस की खिसियाहट सर्वविदित है। उन्ही के चलते साल 2014 में कांग्रेस से उसका एकछत्र राज छिन गया और  इन तीन सालों में कांग्रेस को एक-आध अवसर को छोड़ कर खुशी मनाने का अवसर नहीं मिला। पार्टी चुनाव दर चुनाव हारती जा रही है और भविष्य में भी जीत की संभावना नजर नहीं आरही है। अपने इतिहास के सवा सौ साल के कालखण्ड में कांग्रेस को इतनी दुर्गति का सामना पहले कभी नहीं करना पड़ा जबकि उससे विपक्षी दल होने तक का सौभाग्य छिन गया हो। झुंझलाहट में कांग्रेस सत्तारूढ़ दल भाजपा विशेषकर श्री मोदी के हर कदम का विरोध कर रही है। पार्टी के विरोध को तो समझा जा सकता है और यह उसका संवैधानिक अधिकार भी है परंतु विरोध के लिए कांग्रेस के बड़े नेता अपने श्रीमुख को ही सैप्टिकटैंक बना लेंगे इसकी कल्पना नहीं की जा सकती।

एक बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वित्तीय सरसंघचालक श्रीगुरु जी बैठक को संबोधित कर रहे थे तो एक कार्यकर्ता ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को लेकर तल्ख टिप्पणी कर दी। इस पर गुरुजी ने उस कार्यकर्ता को न केवल फटकारा बल्कि यह कहते हुए बैठक से बाहर कर दिया कि पंडित जी हमारे प्रधानमंत्री हैं, उनके बारे अपमानजनक शब्द सहनीय नहीं हैं। दूसरी उदाहरण खुद नेहरु जी की है जिन्होंने अपनी सरकार के कटु आलोचक उस समय के युवा सांसद श्री अटल बिहारी वाजपेयी की वाकपटुता व भाषण शैली की न केवल प्रशंसा की बल्कि प्रधानमंत्री बनने तक की भविष्यवाणी कर दी। लेकिन आज उसी कांग्रेस में क्या हो रहा है जहां बड़े-बड़े नेताओं के श्रीमुख सैप्टिकटैंक नुमा बनते जा रहे हैं। वैचारिक प्रतिद्वंद्वी को सम्मान देना तो दूर भाषा की शालीनता भी खोती जा रही है। पार्टी के कुछ नेता जब भी कुछ बोलते हैं तो देश के सामाजिक वातावरण में शाब्दिक दुर्गंध फैल जाती है।
संयुक्त प्रगतिशील सरकार के सूचना प्रसारन मंत्री एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री मुनीष तिवारी ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के 67वें जन्मदिन पर उनको लेकर जो ट्वीट किया है उसे राजनीति के पतन की ही मिसाल कहा जा सकता है। दुर्भाग्य की बात तो यह है कि अभी तक न तो उन्होंंने और न ही पार्टी ने उनके ट्वीट पर किसी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उनसे पहले केवल गाली-गलौच में विशेषज्ञ होने की योग्यता के चलते कांग्रेस में पदवीयां पाने वाले श्री दिग्विजय सिंह भी एक सप्ताह पहले ही प्रधानमंत्री पर अभद्र टिप्पणी कर चुके हैं। तिवारी का या कांग्रेस का यह कोई पहला  व इनके व्यवहार से आशंका होती है कि आखिरी अभद्र ब्यान नहीं है। इससे पहले श्री तिवारी अगस्त 2011 में सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे को भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबे व्यक्ति बता कर विवादों में फंस चुके हैं।
वैसे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को लेकर कांग्रेस की मनोदशा किसी से छिपी नहीं है। गुजरात चुनावों में पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी उन्हें 'मौत का सौदागर' बता चुकी हैं। विगत वर्ष पाकिस्तान पर सर्जीकल स्ट्राईक के बाद पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री राहुल गांधी उनके लिए 'खून की दलाली' करने जैसे शब्दों का प्रयोग कर चुके हैं। कांग्रेस के एक अन्य अहंकारी नेता श्री मणिशंकर अय्यर तो विगत लोकसभा चुनाव के दौरान उन्हें 'चाय बेचने वाला' कह कर उलाहना देते हुए अपने यहां चाय की दुकान खोलने की अनुमति तक जैसे अपमानजनक जुमलों का प्रयोग कर चुके हैं। इस तरह की निकृष्ठ उदाहरणों की फेरहिस्त काफी लंबी है और बताती है कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी जो अपने आप को स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करने का भी दावा करती है के नेता जुबान पर नियंत्रण खो रहे हैं। पार्टी के नेता अपने राजनीतिक विरोधियों की तुलना हिटलर, फासिस्टों से करने के बाद जानवरों से भी करने लगे हैं और अपनी अभद्र शब्दावली में गाली का छोंक लगाने लगे हैं।
इस तरह की चर्चाओं में अक्सर दलील दी जाती है कि दूसरे दलों के नेता भी इसी तरह की भाषा का इस्तेमाल करते हैं। उदाहरण के लिए यह लोग भाजपा सांसद साक्षी माहाराज, साध्वी निरंजना भारती का नाम लेते हैं परंतु यह दलील देने वाले वक्ता भूलते हैं कि विवादित ब्यानों व अभद्र शब्दावली में काफी अंतर है। विवादित ब्यान भी नहीं दिए जाने चाहिएं परंतु अभद्रता व अश्लीलता तो किसी भी सूरत में सहनीय नहीं है।
यह एक मानवीय स्वभाव है कि भ्रष्टाचार की तरह अभद्रता भी ऊपर से नीचे सफर करती है। जब किसी पार्टी का कार्यकर्ता देखता है कि उनके बड़े नेता इस शब्दों का प्रयोग करते हैं तो वे भी इसका अनुसरन करते हैं। आम समाज में विचरण करते हुए इस तरह के शब्दों का प्रयोग सीधा-सीधा झगड़े को निमंत्रण है। याद रहे किसी भी झगड़े व टकराव का पहला चरण गाली गलौच ही है। बड़े नेता एसी कमरों में बैठ कर सोशल मीडिया के जरिए इस काम को करते हैं और जब कार्यकर्ता समाज में इनका प्रयोग करता है तो सीधा टकराव पैदा होता है और हिंसा होती है। इसका उदाहरण देश की वामपंथी पार्टियां रही हैं जो अपने विरोधियों के लिए फासीवादी, हिटलर समर्थक जैसे अभद्र शब्दों का प्रयोग करते हैं और इससे उनके समथकों में दूसरे दलों के प्रति इतनी कटुता फैलती है कि वे अपने विरोधियों की हत्या तक करने को नहीं चूकते। केरल में यही कुछ हो रहा है और बंगाल में यही काम ममता बैनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के प्रति कांग्रेस की खिसियाहट सर्वविदित है। उन्ही के चलते साल 2014 में कांग्रेस से उसका एकछत्र राज छिन गया और  इन तीन सालों में कांग्रेस को एक-आध अवसर को छोड़ कर खुशी मनाने का अवसर नहीं मिला। पार्टी चुनाव दर चुनाव हारती जा रही है और भविष्य में भी जीत की संभावना नजर नहीं आरही है। अपने इतिहास के सवा सौ साल के कालखण्ड में कांग्रेस को इतनी दुर्गति का सामना पहले कभी नहीं करना पड़ा जबकि उससे विपक्षी दल होने तक का सौभाग्य छिन गया हो। झुंझलाहट में कांग्रेस सत्तारूढ़ दल भाजपा विशेषकर श्री मोदी के हर कदम का विरोध कर रही है। पार्टी के विरोध को तो समझा जा सकता है और यह उसका संवैधानिक अधिकार भी है परंतु विरोध के लिए कांग्रेस के बड़े नेता अपने श्रीमुख को ही सैप्टिकटैंक बना लेंगे इसकी कल्पना नहीं की जा सकती।

- राकेश सैन
मो 097797-14324

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