मेरा निजी आग्रह है कि हर हिंदू अपने उन युवा बच्चों को यह कहानी जरूर सुनाएं जो आत्मनिंदा से पीडि़त हैं। यह कहानी उन लोगों के लिए भी जरूरी है जो हिंदुत्व का मजाक उड़ाते या निंदा करते और दूसरों की शान के कसीदे पढ़ते हैं। यह कथा उनके लिए भी जरूरी है जो किसी की बातों में आकर धर्म बदल लेते हैं परंतु जब वास्तविकता से सामना होता है तो या तो पछताने के अतिरिक्त कुछ नहीं होता या फिर वही होता है जो केरल की इस 23 साल की हिंदू लड़की आथिरा के साथ हुआ। मैं किसी धर्म की स्तुति करने का विरोधी नहीं और न ही दूसरी आस्था की अच्छी बातों को स्वीकार करने का विरोधी परंतु जरूरी नहीं है कि इसके लिए अपने धर्म को छोड़ा जाए। इस घटना से सभी को यह भी ध्यान में आएगा कि हमें अपने बच्चों को स्वधर्म, अपनी संस्कृति, परिवारिक मूल्यों की शिक्षा देनी क्यों और कितनी जरूरी है।
ओम नम: शिवाय के जयघोष के साथ केरल के कासरगोड जिले की 23 साल की अथिरा जब पत्रकारों से मुखातिब हुई तो उसके मुंह से पहला वाक्य यहीं निकला। अथिरा उस युवती की कहानी है जो इसी साल जुलाई में हिन्दू धर्म को छोड़कर इस्लाम कबूल कर लिया था। जुलाई में अथिरा जब मीडिया को संबोधित कर रही थी तो वो पर्दे (हिजाब) में थी, तब उसने कहा था, 'मैं अपनी इच्छा से इस्लाम कबूल कर रही हूं।' अथिरा ने तब दुनिया के सामने अपने आपको आएशा नाम से परिचित करवाया था। गुरुवार 21 सितंबर को कोच्चि में आएशा ने फिर से प्रेस कॉन्फ्रेंस की, लेकिन इस बार वह बदली बदली हुई थी। इस बार आएशा का हिजाब गायब था, उसके मस्तक पर तिलक लगा हुआ था उसने एक बिंदी लगा रखी थी। आएशा एक बार फिर से हिन्दू बन गई थी उसने अपना पुराना नाम अथिरा अपना लिया। द न्यूज मिनट की रिपोर्ट के मुताबिक अथिरा ने कहा कि उसके दोस्तों ने उसे बहका दिया था, पथभ्रष्ट कर दिया था।
अथिरा ने पत्रकारों को बताया कि उसके मुस्लिम दोस्तों ने उसके सामने इस्लाम का संसार रचा उसे बहकावे में आ गई। अथिरा ने कहा कि उसके दोस्त कहा करते थे कि, एक पत्थर और एक मूर्ति की पूजा करना बेवकूफी है। अथिरा ने बताया कि उसके दोस्त कहते थे कि हिन्दुत्व में कई देवता है, लेकिन इस्लाम में एकमात्र सर्वोच्च शक्ति है। अथिरा कहती है कि धीरे-धीरे उसके दिमाग में हिन्दुत्व के प्रति शक भर गया। जब वो इन चीजों के बारे में सोचती तो उसे लगता कि उसके मुस्लिम दोस्त सही कह रहे थे। जल्द ही अथिरा के दोस्त उन्हें इस्लाम के बारे में किताबें देने लगे। उनमें से एक किताब नरक (जहन्नुम) के बारे में थी। अथिरा इस किताब को पढ़कर बेचैन हो गई, उसे लगने लगा कि अगर वो इस्लाम कबूल नहीं करती है तो उसे भी इससे गुजरना पड़ेगा। उसे इस्लामी उपदेशक जाकिर नाईक के वीडियो देखने को दिये गये। उससे उसे यकीन हो गया कि इस्लाम एक बेहतर धर्म है, मैंने आंख मूंद कर यकीन कर लिया कि हिंदू धर्म खराब है।
अथिरा ने जुलाई के पहले सप्ताह में अपना घर छोड़ दिया। उसने 15 पन्नों का एक पत्र अपने माता-पिता के नाम लिखा और कहा कि वो इस्लाम के बारे में पढऩे जा रही है। 27 जुलाई को उसने कन्नूर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया, अदालत ने उसे नारी निकेतन में भेज दिया। अथिरा के माता-पिता उसकी कस्टडी लेने के लिए केरल उच्च न्यायालय गये। अदालत में अथिरा ने कहा कि अगर उसके माता-पिता उसे इस्लामी कायदे कानून मानने से नहीं रोकते हैं तो वो उनके पास जाने को तैयार है। इसके बाद कोर्ट ने अथिरा के माता-पिता को उसकी कस्टडी दे दी। अथिरा बताती है कि मल्लपुरम में वो अपने एक दोस्त के जरिये एक उस्ताद से मिली, जिसके बाद उसे एक व्हाट्सअप ग्रुप से जोड़ दिया गया। इसका नाम था हिदायत सिस्टर्स। अथिरा बताती है कि इस ग्रुप में एक ऐसी लड़की थीं जो मुस्लिम लड़के से प्यार करने की वजह से अपना धर्म छोड़कर इस्लाम कबूल कर ली थी।
अथिरा बताती है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के एक कार्यकर्ता सिराज ने उसे कई तरह की सलाह दी। उसके मुताबिक सिराज और उसके जैसे कई लोग उसे बताते थे कि अदालत में उसे किस तरह से बयान देना है। अथिरा के मुताबिक हिन्दू हेल्पलाइन के लोगों ने उसके पिता की मदद की और उसे एर्नाकुलम के अर्स विद्या समाजम के बारे में बताया। अथिरा के मुताबिक इन लोगों ने उन पर कोई दवाब नहीं दिया, बल्कि उसे सही सूचना दी। उन्होंने अथिरा को खुले दिमाग से कुरान को फिर से पढऩे की शिक्षा दी। अथिरा कहती है कि जब मैने तार्किक ढंग से कुरान पढ़ा, तो मेरे दिमाग में कई शंकाएं पैदा हुई। अथिरा ने इसके बाद समाजम में दाखिला लिया और इसके बाद उसने फिर से हिन्दुत्व में लौटने का फैसला लिया।
इस घटना के बाद अब युवाओं के परिजनों की भी आंखें खुल जानी चाहिएं। जब तक हम अपने बच्चों को अपनी संस्कृति, संस्कार, आस्था, परंपराओं की शिक्षा नहीं देंगे तब तक वे जीवन में यूं ही भटकाव के शिकार होते रहेंगे। आज हम अपने बच्चों को हर सुविधा उपलब्ध करवाते हैं, उनके भविष्य की चिंता करते हैं, विरासत में धनसंपदा, जमीन जायदाद छोड़ कर जाने की इच्छा रखते हैं परंतु उन्हें सबसे जरूरी चीज संस्कार व अपने परिवार की परंपरा देने में लापरवाही बरतते हैं। इन्हीं बातों का परिणाम है कि हमारे बच्चे अथिरा की भांति जड़ विहीन हो कर भटकते हैं।
- राकेश सैन
मो. 097797-14324
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