Wednesday, 27 September 2017

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, संदेशवाहक को गोली न मारें

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनावों में हाशिए पर जा चुकी वामपंथी व छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी विचारधारा के लोगों को मिली आंशिक जीत से इनके आकाओं को लगने लगा है कि उनकी शवसाधना काम कर रही है। ऐसे में अत्यधिक सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। पिछले तीन सालों का अनुभव है कि ये ताकतें युवा वर्ग विशेषकर विद्यार्थियों पर ध्यान आकर्षित कर रही हैं। इन हालातों में थोड़ी सी भी चूक या लापरवाही देश के वातावरण को प्रभावित कर सकती हैं। 

मुंबईया फिल्मों में अकसर देखा जाता है कि खलनायक को जब उसका साथी कोई ऐसा समाचार सुनाता है जो उसे प्रिय न हो तो वह उसे गोली मार देता है। इसे कहते हैं संदेशवाहक (मैसेंजर) को ही गोली मारना। कमोबेश बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में कुछ ऐसा ही हुआ है जिसके चलते आग इतनी भड़की। अगर विश्वविद्यालय प्रशासन समय पर उचित कार्रवाई करता तो न बात बिगड़ती और न ही तिल का ताड़ बनता। विश्वविद्यालय प्रशासन चाहे लाख दलीलें दे कि पूरे प्रकरण के पीछे बाहरी लोगों का हाथ है और पेट्रोल बमों का प्रयोग विद्यार्थी नहीं करते परंतु उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि इन बाहरी व्यक्तियों को रोकना व अराजक तत्वों को पहचानना किसका काम था? न्याय की मांग है कि छेड़छाड़ पीडि़ताओं की शिकायत पर कार्रवाई की जाए और दोषियों को दंड दिया जाए ताकि महामना पंडित मदनमोहन मालवीय जी की यह अमूल्य धरोहर राजनीति की आग से बची रहे।


मामला उस समय बिगड़ा जब आट्र्स विषयों की छात्रा के साथ रात के समय तीन मोटरसाइकिल सवार शोहदों ने छेड़छाड़ करनी शुरू कर दी। छात्रा ने जब इसकी शिकायत छात्रावास के संरक्षक (होस्टल वार्डन) से की तो उन्होंने छात्रा से ही प्रश्न करना शुरू कर दिया कि वह इतनी देर रात  बाहर क्या कर रही थी? यानि यहीं से शुरू हो गया संदेशवाहक को गोली से उड़ाने का प्रयास। इससे आक्रोषित छात्राओं ने जब विश्वविद्यालय के कुलपति से मिलने का प्रयास किया तो उन्होंने मिलने से ही इंकार कर दिया। गुस्साई छात्राओं ने जब इसके खिलाफ नारेबाजी की तो वहां पर तैनात पुलिस बल ने उन पर लाठीचार्ज किया।
मीडिया में जिस तरह से समाचार छन कर आरहे हैं उससे पता चलता है कि विश्वविद्यालय के आंतरिक अनुशासन में कहीं न कहीं बड़ा झोल है। छात्राएं बता रही हैं यहां छात्राओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं साधारण बात हैं। उन पर कितनी व कैसी कार्रवाई होती है उसका तो ताजा उदाहरण मौजूदा प्रकरण ही है, जहां होस्टल वार्डन ने पीडि़त छात्रा को ही यह कह कर कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया कि वह आधी रात को बाहर क्या करने निकली थी?
प्रश्न पैदा होता है कि विश्वविद्यालय के कुलपति जब इन परिस्थितियों में पीडि़त छात्राओं से मिलते ही नहीं तो उनके होने की प्रासंगिता क्या है? विश्वविद्यालय में कानून व्यवस्था बनाए रखने व किसी अन्याय से पीडि़त को न्याय दिलवाने की की जिम्मेवारी कुलपति की नहीं तो और किसकी होनी चाहिए। कुलपति महोदय ने तो पीडि़ताओं को न्याय दिलवाना तो दूर उन्हें मिलना और ढांढस बंधाना भी उचित नहीं समझा। कुलपति महोदय दलील दे रहे हैं कि विश्वविद्यालय के बाहरी व्यक्तियों के चलते आग भड़की। राजनीति व कानून व्यवस्था को लेकर उत्तर प्रदेश जैसे संवेदनशील राज्य में इस तरह के प्रदर्शनों में आगजनी व पेट्रोल बमों का प्रयोग होने की आशंका अत्यधिक रहती है तो विश्वविद्यालय प्रशासन के साथ-साथ स्थानीय प्रशासन ने इन अवांछित तत्वों पर नजर क्यों नहीं रखी गई? उन्हें प्रदर्शनकारी छात्राओं के बीच घुसने क्यों दिया गया? ऊपर से रही सही कसर पुलिस प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ केस दर्ज करके पूरी कर दी। एक तरफ देश 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' के नारे के साथ महिला सशक्तिकरण की ओर आगे बढ़ रहा है तो ऐसे समय में छात्राओं के साथ होने वाली ऐसी घटनाएं विरोधियों को बोलने का अवसर प्रदान करती हैं।
मीडिया में जिस तरह से समाचार छन कर आरहे हैं उससे पता चलता है कि विश्वविद्यालय के आंतरिक अनुशासन में कहीं न कहीं बड़ा झोल है। छात्राएं बता रही हैं यहां छात्राओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं साधारण बात हैं। उन पर कितनी व कैसी कार्रवाई होती है उसका तो ताजा उदाहरण मौजूदा प्रकरण ही है, जहां होस्टल वार्डन ने पीडि़त छात्रा को ही यह कह कर कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया कि वह आधी रात को बाहर क्या करने निकली थी? महाविद्यालय व विश्वविद्यालय परिसर शिक्षण के साथ-साथ जीवन के सर्वांगीण विकास की कार्यशालाएं हैं, जब यहां पर सुरक्षा का वातावरण ही नहीं होगा तो हमारी युवा पीढ़ी का समुचित विकास कैसे होगा? ऊपर से किसी को क्या अधिकार है कि वह किसी युवति या छात्रा से पूछे कि रात के समय वह बाहर क्यों निकली? एक तो विश्वविद्यालय विद्यार्थियों को सुरक्षा नहीं दे पाया और ऊपर से पीडि़त को ही दोषी ठहरा दिया।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनावों में हाशिए पर जा चुकी वामपंथी व छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी विचारधारा के लोगों को मिली आंशिक जीत से इनके आकाओं को लगने लगा है कि उनकी शवसाधना काम कर रही है। ऐसे में अत्यधिक सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। पिछले तीन सालों का अनुभव है कि ये ताकतें युवा वर्ग विशेषकर विद्यार्थियों पर ध्यान आकर्षित कर रही हैं। इन हालातों में थोड़ी सी भी चूक या लापरवाही देश के वातावरण को प्रभावित कर सकती हैं। यह ठीक है कि आज देश में राष्ट्रवाद के पक्ष में वातावरण बना हुआ या कहा जाए तो राष्ट्रवादियों के हाथ ऊंचे नजर आरहे हैं परंतु यह बढ़त बनाए रखना भी बहुत बड़ी चुनौती का काम है। बनारस विश्वविद्यालय जैसे प्रकरण युवाओं में गलत संदेश पहुंचा सकते हैं। विद्यार्थियों, युवाओं की या किसी की भी जो उचित शिकायत है उसे सुना जाए व उनका निस्तांतरण करें, यूं संदेशवाहक को गोली मारना बुद्धिमता नहीं है।

- राकेश सैन
मो. 097797-14324

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