Tuesday, 10 October 2017

आतिशबाजी पर अन्याय सरीखा न्याय

हर त्यौहार तनाव में ही क्यों मनने लगे हैं? क्या ये सांप्रदायिक या पर्यावरणीय खतरे हैं या आतंकवाद को न्यौता या नए परीक्षणों के अवसर हैं ? अगर ऐसा नहीं है तो फिर हर त्यौहार से पहले हाई अलर्ट क्यों जारी करने पड़ते हैं? क्यों हर साल दुर्गा पूजा पर रोक लगा कर देश के सांप्रदायिक सौहार्द को बचाने का दिखावा होता है। अब तो देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अन्याय सरीखा फैसला लेते हुए दिवाली को भी परीक्षण का अवसर बना दिया। देश को बताया गया कि न्यायालय देखना चाहता है कि दीपावली के दिन दिल्ली क्षेत्र में आतिशबाजी पर रोक लगाने से कितना प्रदूषण कम होगा। शायद यह पहला अवसर है जब सर्वोच्च न्यायालय ने इस तरह लोगों को भावनात्मक पीड़ा पहुंचाने के साथ-साथ संविधान में प्रदत्त समानता के अधिकारों व धरातल की वास्तविकताओं की अनदेखी की गई।
देश में हर उत्सव व परिवारिक खुशियां भी पटाखे फोड़ कर मनाई जाती हैं। घर में बच्चे का जन्म हो या विवाह या फिर नए साल का आगमन, यहां तक कि टीम इंडिया कोई मैच भी जीतती है तो खूब बम फूटते हैं परंतु सामान्य चर्चाओं में प्रदूषण का ठीकरा अकेले दिवाली के सिर फूटता है। ठीक उसी तरह जैसे कि हर बार यह साबित किया जाता है कि देश में जलसंकट के लिए केवल होली ही जिम्मेवार है। न्यायालय ने भी संविधान की भावनाओं व धरातल की वास्तविकताओं की अनदेखी कर इन्हीं चर्चाओं में से प्रभावित होकर अपना फैसला सुना दिया लगता है। अगर न्यायालय केवल एक समय सीमा के लिए नहीं बल्कि आतिशबाजी पर ही पूरी तरह प्रतिबंध लगा देता तो उसकी पर्यावरणीय चिंता समझ में आती थी कि चलो न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी परंतु जिस तरीके से दिवाली को परीक्षण के लिए चुना गया वह सामान्य नागरिकों के मन में यह सवाल खड़ा करता है कि संविधान में मिली धार्मिक स्वतंत्रता व समानता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन अगर न्यायालय में होता दिखेगा तो न्याय की आस किससे की जाए? दिवाली देश का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है अगर इस मौके पर आतिशबाजी न की जाए तो त्यौहार की रंग फीका पड़ेगा ही।
इस मुद्दे पर जिस तरह से मीडिया व सोशल मीडिया में बहस छिड़ी है उससे लगता है कि सर्वोच्च न्यायालय ने अकारण ही सांप्रदायिकता की लकीरें खींच दी हैं। लोगों का पूछना स्वभाविक है क्या न्यायालय क्रिसमस और नववर्ष के मौके पर भी आतिशबाजी रोकेगा और बकरीद के मौके पर देश की नदियों को मासूम जानवरों के खून से लाल होने से बचाएगा? क्या सर्वोच्च न्यायालय के पास देशवासियों के इन प्रश्नों का उत्तर है? लोगों का पूछना और भी स्वभाविक हो जाता है जब न्यायालय नवंबर 2016 में आतिशबाजी पर प्रतिबंध लगाता है और उसे 22 सितंबर 2017 में रियायत देते हुए दिल्ली एनसीआर में एक्सपलोसिव एक्ट के तहत पटाखे बेचने के 2500 लाइसेंस जारी करता है। लाइसेंस जारी होने के बाद व्यापारी व छोटे दुकानदार सरकारी आंकड़ों के अनुसार 10 हजार करोड़ की कीमत के 50 लाख किलोग्राम पटाखे अपने यहां स्टोर करते हैं। 9 अक्तूबर को उन्हें अचानक फैसला सुनाया जाता है कि दिल्ली एनसीआर में पटाखे बेचने पर रोक लगा दी गई है। यह रोक भी केवल 1 नवंबर तक रहेगी। अर्थात दीपावली गुजर जाने के तुरंत बाद कभी भी आतिशबाजी की जा सकेगी।
आदेश जारी करने में इतनी जल्दबाजी दिखाई गई कि किसी पक्ष से विचार विमर्श नहीं किया गया और न ही व्यापारियों की सुनी गई। न्यायालय के जिस आदेश से 2500 व्यापारियों ने लाइसेंस लिए वे इस आदेश से एक झटके में अपराधी बन गए। उनके गोदाम अवैध हो गए। अब वे वैध रूप से अपने स्टॉक को दूसरी जगह स्थानांतरित भी नहीं कर सकते क्योंकि ऐसा करते समय पुलिस नाकों पर पकड़े जाने व कानूनी कार्रवाई होने का भय होगा। कहने का भाव कि अदालत ने व्यापारियों के गोदाम अवैध, उनका व्यापार अवैध, स्टाक की ढोआढुआई अवैध कर दी। भ्रष्ट प्रशासन को पूरी छूट दे दी कि वह कभी भी व्यापारियों के गिरेबां में हाथ डाल सके। इस आदेश में रोचक बात यह भी है कि रोक केवल पटाखे बेचने पर है, चलाने पर नहीं अर्थात कोई दिल्ली एनसीआर से बाहर से पटाखे खरीद कर दिल्ली क्षेत्र में चला सकता है। पर्यावरण के प्रति यह कैसी हास्यास्पद चिंता है अदालत की।
अदालतें या कोई भी पक्ष पर्यावरण की चिंता करता है तो इससे किसी को कोई एतराज नहीं है। दिल्ली केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की प्रदूषित राजधानी बन चुका है। इस बात में भी कोई दो राय नहीं कि दिवाली के दिन यह प्रदूषण कई गुणा बढ़ जाता है जो न केवल मरीजों बल्कि सामान्य नागरिकों के लिए घातक है। इसी के चलते दिल्ली दुनिया में दुर्भाग्यवश कुख्यात भी हो चुकी है। तभी तो अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा तीन दिन के लिए दिल्ली आते हैं तो विश्व मीडिया रिपोर्ट करता है कि इन तीन दिनों में उनकी आयु 6 घंटे कम हो गई। आतिशबाजी से निकलने वाला विषाक्त धुआं न केवल आवासीय क्षेत्रों को बल्कि पूरे पर्यावरण को दूषित करता है और कार्बन तत्वों में वृद्धि करता है जो वर्तमान में विश्व की सबसे बड़ी चुनौती जलवायु परिवर्तन की समस्या को बढ़ाती है। इससे निकलने वाली कानफोड़ आवाज ध्वनि प्रदूषण का कारण बनती है जो हृदयरोगियों के  लिए प्राणघातक है। प्रदूषण की कोई भी संजीदा व्यक्ति वकालत नहीं कर सकता लेकिन पर्यावरणीय चिंता यूं पक्षपाती व मनमानी नहीं होनी चाहिए। समाज के किसी वर्ग को यह नहीं लगना चाहिए कि उसे लक्ष्य कर कोई निर्णय लिया जा रहा है।

- राकेश सैन
मो. 097797-14324

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