कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील मोर्चा की सरकार 2014 में विदा हो चुकी है परंतु देश न जाने और कितनी चोर मोरियों की विरासत भुगतने को अभिशप्त है। देश में लगभग चार करोड़ जाली राशन कार्ड, करोड़ों की संख्या में ही सब्सिडी वाले फर्जी घरेलु गैस कनेक्शन, सस्ती यूरिया के नाम पर लूट को बंद करने के बाद अब केंद्र सरकार ने रेलवे में 30,000 ऐसे ट्रैकमैनों की ड्यूटी पर वापसी की है जो वेतन तो रेलवे का लेते परंतु अफसरों के घरों में घरेलू नौकरों का काम करते थे। वे ट्रैक मैन जिन पर रेल पटरियों की सुरक्षा से लेकर रखरखाव तक का जिम्मा था, अपना काम छोड़ कर अफसरों के घरों में झाड़ू-पौंछा लगा रहे थे। रेल गाडिय़ां पटरी से उतर रही थीं और कोसा सरकारों को जा रहा था। रेल मंत्री पियूष गोयल ने वीआईपी संस्कृति समाप्त करने व चोर मोरी बंद करने की दिशा में जो पहल की है वह सराहनीय है।
एक ट्रैक मैन जिसका औसत वेतन 10000 रूपये भी लगाया जाए तो देश की अर्थव्यवस्था पर हर माह 30,000,00,00 रूपये की चपत लग रही थी और रेल दुर्घटनाएं घट रही थीं वह अलग। प्रश्न उठता है कि आज तक किसी सरकार ने इस तरफ ध्यान क्यों नहीं दिया। क्यों यात्रियों की सुरक्षा को ताक पर रखा जाता रहा। इसका साधारण सा जवाब है कि इस तरह के सख्त कदमों के लिए जरूरत पड़ती है दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति व सख्त फैसले करने की क्षमता की जो विगत की सरदार मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रीत्व वाली सरकारों में नहीं दिखीं। भ्रष्टाचार की तरह वीआईपी संस्कृति भी देश की जड़ों को घुन की तरह चाट रही है। इसका ज्वलंत उदाहरण यह 30 हजार ट्रैक मैन ही हैं जो अपनी ड्यूटी की बजाय अफसरों की चंपी करने को मजबूर किए जाते रहे। प्रश्न था कि मजबूत अफसरशाही से पंगा कौन ले, यह काम 56 इंच के सीने वाली सरकारें ही कर सकती हैं जो अब कर दिखाया गया है।
विलंब से ही सही, रेलवे मंत्रालय ने अगर वीआइपी संस्कृति को समाप्त करने की दिशा में पहल की है, तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। रेलमंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि नए आदेश के मुताबिक रेलवे बोर्ड के सदस्यों से लेकर विभिन्न जोन के महाप्रबंधक और सभी पचास मंडलों के प्रबंधक भी अब अपनी सरकारी यात्राएं स्लीपर और एसी-थर्ड श्रेणियों में करेंगे। इसके अलावा रेलवे के बड़े अधिकारियों के बंगलों पर घरेलू नौकरों की तरह काम करने वाले ट्रैकमैन जैसे रेलवेकर्मियों को तुरंत वहां से मुक्त कर उनकी वास्तविक ड््यूटी पर भेजा जाएगा। सचमुच यह आंकड़ा चौंकाने वाला है कि तीस हजार ट्रैकमैन बरसों से अधिकारियों के घरों पर घरेलू नौकरों की तरह काम रहे हैं, जबकि उनका वेतन विभाग से दिया जा रहा। मंत्रालय ने अपूर्व कदम उठाते हुए छत्तीस साल पुराने एक प्रोटोकॉल नियम को भी समाप्त कर दिया है, जिसमें महाप्रबंधकों के लिए अनिवार्य था कि वे रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्यों की क्षेत्रीय यात्राओं के दौरान उनके आगमन और प्रस्थान के समय मौजूद रहेंगे। यह फैसला रेलवे बोर्ड ने खुद किया है। 1981 में बनाए गए इस प्रोटोकॉल को रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष अश्विनी महाजन ने समाप्त करने का एलान किया। उन्होंने यह निर्देश भी दिया है कि किसी भी अधिकारी को कोई गुलदस्ता या उपहार नहीं भेंट किया जाएगा।
वीआइपी संस्कृति को खत्म करने को जुमले की तरह इस्तेमाल किया आम आदमी पार्टी ने, जब पहली बार उसे दिसंबर 2013 में दिल्ली में अपनी सरकार बनाने का मौका मिला था। इसके बाद पूरे देश में इस पर बहस तेज हुई। हालांकि सिर्फ गाडिय़ों से लालबत्ती उतारने तक इस मुद््दे को सीमित नहीं किया जा सकता। इस साल अप्रैल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' संबोधन में कहा था कि सारे देश में वीआइपी संस्कृति के प्रति रोष है; कि वीआइपी (वेरी इंपोर्टेंट पर्सन) संस्कृति को इपीआइ (एवरी पर्सन इंपोर्टेंट) संस्कृति से बेदखल करना होगा। हर व्यक्ति का मूल्य और महत्त्व है। रेलवे मंत्रालय का ताजा आदेश प्रधानमंत्री के उस संदेश को ही आगे बढ़ाने की कोशिश है। जाहिर है, मकसद नेक है। लेकिन असल मुश्किल पेश आती है इसे लागू करने में। लोग अपने अनुभव से जानते हैं कि ऐसी भली-भली योजनाओं का क्या हश्र होता रहा है? हर मंत्रालय और विभाग में लिखा रहता है कि रिश्वत लेना और देना गैरकानूनी है, या कोई सरकारी या निजी व्यक्ति किसी के तबादले को लेकर बातचीत नहीं करेगा। लेकिन स्वयं मंत्रीगण इस पर कितना अमल करते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है।स्लीपर या एसी-थर्ड में रेलवे के कितने आला अफसर यात्रा करेंगे, कहना बड़ा कठिन है। वे यात्रा कर रहे हैं या नहीं, इसकी निगरानी कौन करेगा? जहां सौ-दो सौ रुपए लेकर टीटीइ बर्थ बेचते हों, वहां वे अपने अधिकारियों के लिए क्या-क्या व्यवस्था नहीं कर देंगे। इसलिए रेलवे के इन आदेशों को लेकर तभी कोई आश्वस्ति हो सकती है, जब इसे कार्यरूप में परिणत होते देखा जा सकेगा। वीआईपी संस्कृति व चोर मोरियां तभी बंद होंगी जब पूरी भ्रष्ट व्यवस्था की निरंतर निगरानी होनी शुरू होगी।
- राकेश सैन
मो. 097797-14324
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