देश की खडग़बाहू माने जाने वाले पंजाब में आतंकवाद ने एक बार फिर दस्तक दी है। 30 अक्तूबर को अमृतसर में एक स्थानीय संगठन के नेता विपिन शर्मा की गोली मार कर हत्या कर दी। हत्या दिन दिहाड़े व भीड़भाड़ वाले इलाके में की गई है। इससे पहले भी राज्य में इस तरह से चार हत्याएं हो चुकी हैं परंतु जिस तरीके से उक्त हत्याकांड में आतंकियों का चेहरा बिल्कुल स्पष्ट रूप से सामने आया है उससे अब अन्य अंदेशा लगाना बेमानी है कि यह राज्य में फिर से आतंकवाद की आहट है। आतंकवाद पर पुलिस और प्रशासन की तरफ से जो किया जाना है उसमें तत्परता व गंभीरता तो अपेक्षित है ही परंतु समाज की तरफ से हिंदू-सिख एकता व सौहार्द ही इस आतंक का मुंहतोड़ जवाब हो सकता है।
पिछली सदी के सातवें दशक में आरंभ हुए खालिस्तानी आतंकवाद ने प्रदेश ही नहीं समय-समय पर पूरे देश में खूब खून और खाक की खेल खेली। इसमें 30 हजार निर्दोष लोगों की जानें गईं, संपति और राज्य के विकास का नुक्सान हुआ उसका शायद ही कभी अनुमान लगाया जा सके। कुशल नेतृत्व व सुरक्षा बलों की योग्यता के बल पर हमने सदी के अंत तक देश के अंदर तो काफी सीमा तक खालिस्तानी आतंकवाद पर काबू लिया परंतु राख के नीचे कहीं न कहीं चिंगारी सुलगती रह गई। 1984 में हरि मंदिर साहिब में आतंकवादियों को निकालने के लिए की गई सैनिक कार्रवाई और इसी साल दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगों ने इस चिंगारी को बुझने नहीं दिया। इसे हमारी न्यायिक व्यवस्था की दुर्बलता कहें या राजनीतिक हस्तक्षेप या प्रशासनिक अड़ंगेबाजी परंतु दुर्भाग्य यह रहा कि इन दंगों के 34 साल बाद भी हमारी व्यवस्था निर्दोष सिखों के हत्यारों को सजा दिलवाना तो दूर कोई परिणाम लाती हुई भी दिखाई नहीं दी। न ही हमारी सरकारों और न ही राजनेताओं ने हरि मंदिर साहिब को आतंकमुक्त करने हेतु की गई सैनिक कार्रवाई का औचित्य समझाने का प्रयास किया। इन दोनों अति संवेदनशील मुद्दों पर समझा जाता रहा कि समय सभी घावों को भर देगा परंतु ऐसा नहीं हुआ। विदेशों में विशेषकर कैनेडा, अमेरिका, जर्मनी आदि कई देशों में बैठे खालिस्तानी लॉबी ने जख्मों को कुरेदने का काम जारी रखा। कभी आप्रेशन ब्ल्यू स्टार की बरसी तो कभी सिख विरोधी दंगों की बरसियां मना कर राख के नीचे की चिंगारी को सुलगाने का प्रयास जारी रखा गया। देश के खिलाफ दुषप्रचार हुआ, आतंकियों को नायक बना कर युवाओं के सामने पेश किया गया। सभी ने देखा कि किस तरह आतंकियों के स्टीकर कारों पर, उनके चित्र टी-शर्टों पर चिपकाए गए। पंजाबी मीडिया के एक वर्ग ने आग में घी का काम किया।
पंजाब में पिछले साल श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं के जरिए राज्य का सांप्रदायिक महौल बिगाडऩे का प्रयास हुआ। इन घटनाओं के लिए एक डेरे से जुड़े लोगों को जिम्मेवार ठहराया गया परंतु बाद में हुई कई गिरफ्तारियों से पता चला कि बेअदबी की अधिकतर घटनाएं संबंंधित गुरुद्वारों से जुड़े लोगों द्वारा ही की गईं। बेअदबी की आड़ में कट्टरवाद को जिस तरीके से प्रोत्साहन दिया उससे इस बात की आशंका बलवति होती है कि इनके पीछे जरूर बहुत बड़ी साजिश है। दुर्भाग्य है कि विगत विधानसभा चुनाव के महौल में हुईं इन घटनाओं की गहराई से जांच करने की बजाय इसको लेकर केवल और केवल राजनीति हुई। कहने को तो वर्तमान कांग्रेस सरकार ने मामले की जांच के लिए आयोग का गठन किया है परंतु उसकी जांच अभी तक तो कोई उत्साहजनक हालात पैदा करती हुई दिखाई नहीं दे रही है। इसी साल प्रदेश में अलगाववादी तत्वों ने कथित सरबत्त खालसा बुला कर राज्य के महौल को विषाक्त करने का प्रयास किया। सीमापार से नशों की तस्करी ने आतंकवाद का कहीं न कहीं वित्तपोषण किया। नाभा जेल ब्रेक कांड इस बात का गवाह है कि एकाएक पैदा हुए गैंगस्टरों ने आतंकियों को मानव शक्ति उपलब्ध करवाई।
वर्षों से तैयार हो रहे आतंकवाद के पक्ष में इस वातावरण का ही परिणाम है कि एक बार फिर इसकी आशंका बन गई है। पिछले साल-सवा साल में जालंधर से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत सह-संघचालक ब्रिगेडियर जगदीश गगनेजा, लुधियाना में रविंद्र गोसाईं, एक पादरी सहित चार लोग इसका शिकार हो चुके हैं और अब अमृतसर में यह पांचवीं घटना हुई है। उक्त सभी घटनाओं में हत्या की लगभग एक सी शैली अपनाई गई है, जिनमें हत्यारे मुंह ढांप कर आते हैं और संबंधित व्यक्ति की हत्या कर फरार हो जाते हैं। परंतु अमृतसर में पहली बार आतंक का चेहरा नंगा हुआ है और फिर वैसा ही विभत्स चेहरा दिखाई दिया है जिस तरह के चेहरे पिछली सदी में दिखते थे। चाहे पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह व पुलिस प्रमुख सुरेश डोगरा समय-समय पर कहते रहे हैं कि राज्य में आतंकवाद पनपने नहीं दिया जाएगा। लुधियाना पुलिस ने
इसी महीने सात खालिस्तानी आतंकियों को गिरफ्तार करने में सफलता भी हासिल की है परंतु प्रदेश में निरंतर हो रही हत्याएं राज्य में भय का वातावरण पैदा कर रही है। राज्य में आतंकवाद फैलाने का बड़ा कारण बन रहा है सोशल मीडिया परंतु पुलिस प्रशासन कड़ी नजर रखे तो इसी माध्यम से आतंकियों पर नकेल भी कसी जा सकती है। प्रदेश में हवाला कारोबार के जरिए आतंकियों की हो रही फंडिंग को सख्ती से रोका जा सकता है। कुछ भी हो सरकार को तत्काल इस दिशा में गंभीर होना होगा और चिंगारी को दावानल बनने से पहले बुझाना होगा। इस बीच समाज में सभी पक्षों की यह जिम्मेवारी बनती है कि वह किसी भी सूरत में सांप्रदायिक वातावरण को बिगडऩे से बचाए क्योंकि हिंदू-सिख समाज में एकता ही आतंकवाद के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है। इस मजबूत दिवार को किसी तरह की क्षति नहीं पहुंचनी चाहिए।
- राकेश सैन
मो. 097797-14324
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