Saturday, 7 October 2017

'जग' मीत भारत का कितना 'मीत'

भारतीय मूल के जगमीत 2019 में होने वाले चुनाव में जस्टिन ट्रूडू को प्रधानमंत्री पद के एक गंभीर उम्मीदवार के रूप में चुनौती देंगे। जगमीत सिंह खालिस्तान समर्थक लॉबी के माने जाते हैं और कनाडा में रहते हुए कई बार भारत विरोधी अभियानों में हिस्सेदारी कर चुके हैं। कनाडा के तीसरे सबसे बड़े राजनीतिक दल नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) का प्रमुख बनने पर जगमीत सिंह ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी। जगमीत, पंजाब से कनाडा गए एक सिख प्रवासी की संतान हैं। वे आगे की राजनीतिक रेस में कहां तक पहुंच पाएंगे यह आने वाले समय में ही पता चलेगा। पर इस समय एनडीपी सत्तारूढ़ लिबरल पार्टी के लिए गंभीर चुनौती देने वाले दल के रूप में नहीं दिख रही। वर्ष 1972 से 1974 के बीच थोड़े समय के लिए एनडीपी संघीय सरकार में हिस्सेदार रही थी और उस सरकार का नेतृत्व पियरे ट्रूडू कर रहे थे जो जस्टिन के पिता थे। वर्ष 2011 में एनडीपी को मुख्य विपक्षी दल का दर्जा प्राप्त था पर अगले आम चुनाव में इसकी 59 सीटें कम हो गई जिससे यह अपना दर्जा बरकरार नहीं रख पाई। आगामी चुनाव से पहले जगमीत को श्वेत लोगों में आधार मजबूत करके खुद को गंभीर और स्वतंत्र पहचान वाले नेता के रूप में स्थापित करना होगा। उनके दल को अभी सिखों सहित अल्पसंख्यकों और हाशिए पर पड़े लोगों का अच्छा समर्थन मिल रहा है। 
जगमीत ने अभी भारतीय राजनीति पर ज्यादा कुछ नहीं बोला है पर वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आलोचक के रूप में जाने जाते हैं। मोदी ने 2015 में जब कनाडा की यात्रा पर थे तब उन्होंने कनाड़ा सरकार से भारत में अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों का मुद्दा उठाने की मांग की थी। भारत में ऑब्जर्वर्स का मानना है कि कनाड़ा की सरकार वहां खालिस्तान के समर्थन में चलने वाले अभियान के प्रति अनजान बनी रहती है। जगमीत ने एक प्रस्ताव का समर्थन करते हुए 1984 के सिख विरोधी दंगों को जनसंहार कहा था। यह वाकया अप्रेल के माह में हुआ था जब ओंटारियो प्रांतीय विधानसभा की एक सिख महिला सदस्य ने यह प्रस्ताव रखा था। यह महिला लिबरल पार्टी से थी। जगमीत के गृह राज्य ओंटारियो में जस्टिन ट्रूडू ने खालिस्तान समर्थकों के एक कार्यक्रम में भी हिस्सा लिया था। वर्ष 2013 में जगमीत को भारत आने के लिए वीजा देने से इनकार कर दिया था। जगमीत ने यूपीए सरकार में मंत्री रहे कमलनाथ की कनाडा यात्रा के दौरान सक्रिय रूप से विरोध किया था। कनाडा में रहने वाले कई अन्य खालिस्तान से सहानुभूति रखने वालों और कार्यकर्ताओं की भांति ही जगमीत सिंह 1984 के सिख विरोधी दंगों के मुद्दे को युद्ध अपराध या जनसंहार के रूप उठाते रहे हैं। जब ओंटारियो प्रांतीय विधानसभा में भारत विरोधी प्रस्ताव पारित हुआ था तब भारत सरकार ने कनाडा सरकार के समक्ष अपनी आपत्ति दर्ज करवाई थी पर भारतीय आपत्ति ज्यादा प्रभावी नहीं रही । इसका एक कारण यह भी है कि कनाडा एक उदारवादी और सहिष्णु समाज माना जाता है जो खालिस्तान समर्थक कार्यकर्ताओं को पूरी आजादी देता है। भारत से अलग होने के लिए चल रहा खालिस्तान आंदोलन जब कमजोर पड़ गया तो इसके अधिकतर नेता पश्चिमी देशों और कनाडा में गए। कनाडा जाने वाले नेताओं की संख्या सबसे ज्यादा रही। 
हमारे मीडिया में ऐसी रिपोर्ट छपती रही हैं कि कनाडा में बड़ी संख्या ऐसे नेता जाते रहे हैं जिनका पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के निरंतर संपर्क बना हुआ है। कनाडा के रक्षा मंत्री हरजीत सिंह भारत आए तो पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने यह कहकर उनका विरोध किया कि वे खालिस्तानियों से सहानुभूति रखते हैं और उनसे मिलने से इनकार कर दिया। कुछ लोगों का मानना है कि यह दोनों की आपसी नाराजगी है पर इस बात का कुछ तो आधार होगा ही। इसके बाद में हरजीत सिंह ने स्पष्ट किया कि वे किसी भी देश को तोडऩे वाले लोगों को बढ़ावा नहीं देते हैं। एक संघीय सरकार में मंत्री होने के नाते हरजीत सिंह के पास इस तरह का बयान देने के अलावा और कोई विकल्प भी नहीं था। भारत सरकार के लिए चिंता का विषय यह कि कनाडा सरकार ने अलगाववादी कार्यकर्ताओं और खालिस्तान समर्थकों की गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए हैं। जगमीत सिंह के विजय समारोह में खालिस्तान समर्थकों की संख्या ठीकठाक थी जिसमें सुखविंदर सिंह भी उपस्थित था जो आजाद खालिस्तान का समर्थक माना जाता है। कनाडा के जनप्रतिनिधि यह विश्वास रखते दिख रहे हैं कि भारत में सिखों के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव और अत्याचार किया जाता है जो कि गलत है। कनाडा में खालिस्तानी संगठनों की अच्छी-खासी संख्या देखी जा सकती है और इनके कनाडा के प्रभावशाली नेताओं से संपर्क हैं जिसमें जगमीत भी शामिल है। बहरहाल जगमीत ने कहा है कि उनके साथ बचपन में नस्ल के आधार पर भेदभाव हुआ है और वो इसे ठीक करेंगे पर ऐसे पूवाग्रहों को मिटाना इतना आसान भी नहीं है। देखना यह भी रोचक रहेगा कि जगमीत कनाडा की राजनीति में रह कर भारत के कितने मीत बन पाते हैं।

- राकेश सैन
मो. 097797-14324

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