Saturday, 4 November 2017

गुरु नानक शाह फकीर, हिंदुओं के गुरु मुसलमानों के पीर

गुरु नानक देव कुछ ऐसे महापुरुषों में हैं जो किसी खास हदबंदी में नहीं आते। उनका जीवनकाल युगांतकारी था। उस समय केवल भारत में ही नहीं यूरोपीय देशों में भी अत्यंत महत्वपूर्ण घटनाएं घटित हो रही थीं। उसे पुनर्जागरण, उल्लेखनीय खोजों और धार्मिक सुधारकों का समय भी करार दिया जा सकता है। भारत में पुनर्जागरण का दौर इस मायने में भी कहा जा सकता है कि उत्तरप्रदेश में रामानंद और कबीर, महाराष्ट्र में नामदेव और एकनाथ जैसे नायकों-संतो ने ईश्वरीय एकता, प्रेम भाव, भाईचारे और शांति के संदेश देश के विभिन्न भागों में पहुंचा कर सराहनीय कार्य किये थे।
गुरु नानक के उपासकों में हिंदू और मुसलमान ही नहीं, बल्कि अन्य अनेक संप्रदायों, जातियों और विचारधाराओं के लोग आते हैं, जो उनकी महान यात्राओं के दौरान उनसे जुड़े और संपर्क में आये थे। यह जुड़ाव केवल भारत तक ही सीमित नहीं था, बल्कि विश्वव्यापी था। गृहस्थ में रहते हुए भी गुरु नानक ने साधु-संत और फकीराना अंदाज में न केवल गुरुवाणी की रचना की, बल्कि उसके गायन में ताल और सुर तक बताये। इसमें उनके संगी बाला और मर्दाना का भी योगदान था, जो गुरु नानक देव की परछाईं की तरफ उनके साथ गमन किया करते थे। उनके उपदेशों का बड़ा ही विस्तृत दायरा है, जिसके भीतर हर किस्म के समाज, राष्ट्रों तथा वहां के लोगों की समस्याओं और समाधानों का अनोखा सामंजस्य देखने को मिलता है। उनके उपदेश किसी एक फिरके तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वह पूरी मानव जाति के लिए लागू होते हैं। वह आमजन की भाषा और बोली में बात कहते हैं, उनके दिलों में गहरे से छूते हैं। यही कारण है कि उनकी भक्ति पद्धति और भारतीय सुधारकों तथा उनके अनुयायियों के बीच किसी प्रकार की कटुता पैदा होने की गुंजाइश नहीं रहा करती थी। इसीलिए तो कहा जाता है- गुरु नानक शाह फकीर, हिंदू का गुरु, मुसलमान का पीर।

गुरु नानक कहा करते थे कि किसी भी साधु, संत, दरवेश, फकीर या ज्ञानवान पुरुष को यह कतई हक नहीं कि वह अपने आपके लिए जिये। उसका लक्ष्य तो लोक सुधार, ज्ञान का प्रकाश मुख्य सिद्धांत और जीवन का आधार होना चाहिये। सिख धर्म में अनेक आध्यात्मिक और दार्शनिक शब्द प्रयुक्त हैं। ‘शब्द’ और ‘नाम’ पर विशेष जोर दिया गया है। गुरु नानक के अनुसार ‘शब्द’ पारब्रह्म की सृजन शक्ति है। यह परम तत्व का यथार्थ रूप है। ‘नाम’में परमात्मा का नाम भी है और स्वरूप भी। माना जाता है कि महापुरुषों ने परमात्मा के नाम उसके गुणों के आधार पर रखे हैं, जिन्हें कृत्रिम नाम भी कहा जाता है। इसी संदर्भ में परमात्मा की कृपादृष्टि का सिद्धांत गुरुमत के सभी सिद्धांतों का प्राण है। ऐसी आध्यात्मिक साधना के फलस्वरूप गुरु नानक की वाणी का दो ऐसे तत्वों में समावेश हो गया जिन्होंने मध्ययुगीन समाज और संस्कृति को समृद्ध किया है। ये दो तत्व हैं- मानववाद और सर्वधर्म समभाव। इसी विचारधारा के चलते गुरु नानक ने भारत में सामाजिक चेतना जगाकर जनजागृति का मंत्र फूंका और अन्याय तथा अत्याचार के विरुद्ध जनता को संगठित किया। उन्होंने निराश जनता की चेतना में आत्मविश्वास और ईश्वर विश्वास की भावना को सशक्त किया।


राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो. 097797-14324

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