
यह बात सभी अच्छी तरह जानते हैं कि सिख पंथ में केसों का श्वासों जितना महत्त्व है परंतु कोई नाई की दुकान पर जाता है तो स्वेच्छा से जाता है न कि कोई उसके साथ जबरदस्ती करता है। मेरा निजी अनुभव है कि जब भी कोई सिख बंधू केस कत्ल करवाता है तो संबंधित नाई अगर उसे जानता है तो उसके परिवार वालों को जरूर बताता है और केस कत्ल करवाने वाले को भी समझाने का प्रयास भी करता है। बाल काटना और दाढ़ी बनाना नाई का युगों से चला आरहा व्यवसाय है, उसकी अजीविका का साधन है शौक नहीं। बहुत से नाई अपना व्यवसाय भी करते हैं और सिख मर्यादा का पालन भी। कोई भी व्यवसाय किसी धर्म के खिलाफ व हीन नहीं हो सकता। नाई का धंधा तो उस भगत शिरोमणि सैन जी का भी है जिनकी बाणी श्री गुरु ग्रंथ साहिब के अंग (पृष्ठ) क्रामांक 695 में दर्ज है। वे फरमाते हैं : -
धूप दीप घ्रित साजि आरती ॥
वारने जाउ कमला पती ॥1॥
मंगला हरि मंगला ॥
नित मंगलु राजा राम राइ को ॥1॥ रहाउ ॥ - अंग 695
मर्यादावादियों को समझना चाहिए कि भारतीय समाज में व्यवसाय व व्यवसाय के आधार पर किसी को नीचा नहीं माना गया और न ही इस तरह किसी का बहिष्कार किया गया। इस देश की संत परंपरा में नंदा नाई थे, तो कल्हन कसाई, रविदास जी चर्मकार, गणिका वेश्या, कबीर जुलाहे का व्यवसाय करते थे। उक्त सभी संतजन देशवासियों के परमश्रद्धेय हैं और इनके व्यवसाय स्थलों पर भी किसी तरह का धार्मिक अनुष्ठान विषेध नहीं है। भगत सैन जी बारे खुद गुरु अर्जुनदेव जी लिखते हैं : -
जैदेव तिआगिओ अहमेव ।।
नाई उधरिओ सैनु सेव ।। अंग 1192
सिख पंथ के अटूट अंग पांच प्यारों में बाबा साहिब सिंह भी नाई थे, जिन्होंने श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के हाथों से अमृतपान किया और वे गुरुघर वाले हो गए। यहां यह भी वर्णननीय है कि गुरु गोबिंद सिंह जी ने भी इन्हीं पांच सिंहों के हाथों अमृतपान किया और 'आपे गुरु -चेला' की नई परंपरा को जन्म दिया। बाबा साहिब सिंह मुगलों से लड़ते हुए चमकौर की गढ़ी में शहीद हो गए।
नाई जाति का पौराणिक व गौरवशाली इतिहास है जो भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण से जुड़ा है। 'पंजाब दीयां जातां अते गोतां दा इतिहास' पुस्तक अनुसार, रघुवंश में रिवाज था कि शादी के समय दही व शहद से बना मधुपर्क नाई लेकर जाते थे। हिंदू समाज में यह परंपरा आज भी विद्यमान है जो फेरों के समय निभाई जाती है। भगवान श्रीराम के फेरों के समय तत्काल अयोध्या से नाई को बुलाया नहीं जा सकता था। तो श्रीराम ने अपने उबटन से नाई का निर्माण किया और इसी नाई के वंशज आज 'गोला' नाई के नाम से जाने जाते हैं। गोला खाप का संबंध भगवान श्रीकृष्ण से भी जोड़ा जाता है। कुछ विद्वान मानते हैं कि गोला असल में गोपाल थे जो गायों का पालन करते और श्रीकृष्ण से संगी साथी थे। गोपाल शब्द बिगड़ कर 'गोला' बना।
देखें तो नाई जाति जितनी महत्त्वपूर्ण है उतनी ही उपेक्षित भी। समाज की सर्वोच्च सेवा व जीवन का सर्वोच्च बलिदान करने के बाद भी उपेक्षा का क्रम टूटा नहीं है। यहां तक कि कुछ लोग मजाक में कह देते हैं कि 'तू बंदा है कि नाई' अर्थात जो नाई है वह इंसान नहीं। श्री गुरु ग्रंथ साहिब पूरी मानवता की धरोहर है और लगता है कि उक्त मर्यादावादियों ने भी नाईयों को मानव नहीं समझा होगा। नाई का व्यसाय अति सम्मानित है। जब कोई किसी के बाल संवारता है तो वह उसे स्वच्छता की सौगात भी दे रहा होता है। किसी के नाखून काटना उतना ही महत्त्वपूर्ण कार्य है जितना कि एक चिकित्सक का। चिकित्सक तो रोग का उपचार करता है जबकि नाई नाखून काट कर उसे रोगों से बचाता है। क्षत्रिय की मूंछ को ऊंचाई देता है नाई तो ज्ञान की प्रतीक पंडित जी की शिखा का विन्यास भी वही करता है। पहले जब नाई रिश्ते करते थे तो हमारा समाज तलाक जैसे शब्द के अर्थ भी नहीं जानता था परंतु आज लोग खुद रिश्ते करने लगे हैं तो कई बार देखने में आता है कि सात जन्मों का रिश्ता निभाने का वायदा करने वाले वर-वधु शादी के दूसरे महीने ही कोर्ट कचहरी के चक्कर काटते देखे जाते हैं।
कहते हैं कि एक बार सूरदास जी कुएं में गिर गए और सहायता के लिए चिल्लाने लगे। किसी ने आकर उनका हाथ पकड़ा तो सूरदासजी झट से पहचान गए कि यह कोई और नहीं मेरे कान्हा ही हैं। वह कान्हा-कान्हा चिल्लाने लगे और कन्हाई हाथ छुड़ा कर भाग चले। इस पर सूरदास जी के मुख से निकला :-
हाथ छुड़ाए जात हो, निर्बल जान के मोहे।
हृदय से जब जाओ तो, सबल मैं जानूं तोहे।
उसी तरह मुक्तसर में सबल मर्यादावादियों ने हमारी नाई की दुकान से श्री गुरु ग्रंथ साहिब को तो निकाल लिया परंतु क्या वो हमारे दिल में विराजमान गुरु साहिब को निकाल सकते हैं। और क्या इन सबल लोगों में इतनी क्षमता है कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब से भगत सैन जी को निकाल सकें? सिख पंथ की सर्वोच्च संस्था श्री अकाल तख्त साहिब को इस घटना का तुरंत संज्ञान लेना चाहिए क्योंकि हमारे समाज के पास जीवन भर की पूंजी श्री गुरु ग्रंथ साहिब व पंथ ही है अगर यह भी हमसे छीन लिए गए तो हम कहीं के नहीं रहेंगे।
- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो. 097797-14324
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