विवाह मानव जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण मोड़ है, यह वह अवसर है जब दो अज्ञात व अपरिचित लोग एक दूसरे को समर्पित होते हैं। जीवन के इस अहम पल के साक्षी बनते हैं सात फेरे और मंडप में लिए व दिए जाने वाले सात वचन। अगर इन वचनों में पति से पत्नी की अपेक्षा, उसके दायित्व, परिवार के प्रति दोनों की जिम्मेवारी सहित उन सभी बातों का समावेश है जो वर-वधु दोनों को भविष्य में दरपेश आने वाली हैं। अगर इन वचनों का अक्षरश: पालन किया जाए तो वैवाहिक जीवन में शायद ही कभी परेशानी का सामना करना पड़े। संगीत के सात स्वर हैं और इंद्रधनुष के सात रंग, इनमें कोई भी रंग और कोई भी स्वर निकाल दिया जाए तो जीवन बदरंग हो जाता है और उसकी लयबद्धता समाप्त हो जाती है। देखने में आरहा है कि विवाहोत्सव का जितना महत्त्वपूर्ण यह सात वचनों वाला घटक है उतना उपेक्षित भी है। खाने-पीने, नाच-गाने, हंसी-मजाक तो सभी तनमन्यता से करते हैं परंतु फेरों के समय कम ही लोग पंडित जी की बातों पर ध्यान देते हैं। असल में यह अवसर केवल वर-वधु के लिए ही शिक्षा देने वाला नहीं बल्कि वहां पर मौजूद उन सभी लोगों को भी अपनी जिम्मेवारियों का स्मरण करवाने वाला होता है। समाज में बढ़ रहे संबंधोच्छेद के मामले बताते हैं कि हमसे कहीं चूक अवश्य हो रही है। हमने सात स्वरों से छेड़छाड़ करनी शुरू कर दी जिससे हमारा जीवन बेसुरा होने लगा है। सफल विवाहिक व परिवारिक जीवन के लिए यह सात वचन सच्चे मार्गदर्शक हैं।
तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी।
अर्थात कन्या वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना। कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। इसका साधारण अर्थ है कि आज से पुरुष अकेला नहीं, नारी भी उसके शरीर का अंग बन चुकी है। वह जीवन में ऐसा कोई काम न करे जिसका खमियाजा नारी को भी भुगतना पड़े। अब तक पुरुष एकल शरीर था परंतु अब अर्धांगिनी उसके साथ जुड़ चुकी है। उसका परिवार के प्रति दायित्व बढ़ गया है।
पुज्यो यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम।।
अर्थात जिस प्रकार पुरुष अपने माता-पिता का सम्मान करता है, उसी प्रकार लड़की के माता-पिता का भी सम्मान करें तथा कुटुंब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बना रहे। अपने धर्मग्रंथ सास-ससुर को दूसरे माता-पिता का दर्जा देते हैं। सास-ससुर की सम्मान केवल लड़की के लिए ही जरूरी नहीं बल्कि लड़के के लिए भी अनिवार्य है। कभी दहेज के लिए उन्हें प्रताडि़त या परेशान नहीं करना चाहिए। न ही पति को पत्नी व पत्नी को पति के परिवार वालों के प्रति कटुवचनों का प्रयोग करना चाहिए। यहां इस वचन के द्वारा कन्या की दूरदृष्टि का आभास होता है। उपरोक्त वचन को ध्यान में रख वर को अपने ससुराल पक्ष के साथ सदव्यवहार के लिए अवश्य विचार करना चाहिए।
जीवनम अवस्थात्रये पालनां कुर्यात
वामांगंयामितदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृतीयं।।
तीसरे वचन में कन्या कहती है कि आप मुझे यह वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं युवावस्था, प्रौढ़ावस्था, वृद्धावस्था में मेरा पालन करते रहेंगे। इस वचन के द्वारा पुरुष को नारी के प्रति जिम्मेवारी का एहसास कराया गया है। महिला की जरूरतें पूरी करना पुरुष का दायित्व है परंतु महिला को भी अपने पति को अनावश्यक रूप से परेशान करने का अधिकार नहीं है। उसका भी संयमी, मितव्ययी,संतोषी होने की शास्त्र अपेक्षा करते हैं।
कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुथर्:।।
कन्या चौथा वचन यह मांगती है कि अब तक आप घर-परिवार की चिंता से पूर्णत: मुक्त थे। अब जब कि आप विवाह बंधन में बंधने जा रहे हैं तो भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व आपके कंधों पर है। यदि आप इस भार को वहन करने की प्रतिज्ञा करें तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूं। वैसे शादी का अर्थ ही परिवार की जिम्मेवारी उठाना है जो बिना पुरुषार्थ संभव नहीं है। पिता या दादा का कमाया जितना मर्जी हो परंतु पुरुष को अपने पुरुषार्थ से जीवन यापन करना चाहिए। अपने पुरखों से मिली संपति को धर्म के मार्ग पर चलते हुए बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। इस वचन में कन्या वर को भविष्य में उसके उत्तरदायित्वों के प्रति ध्यान आकृष्ट करती है। इस वचन द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है कि पुत्र का विवाह तभी करना चाहिए, जब वह अपने पैरों पर खड़ा हो, पर्याप्त मात्रा में धनार्जन करने लगे।
स्वसद्यकार्ये व्यहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या।।
यहां जो कन्या कहती है, वह आज के परिप्रेक्ष्य में अत्यंत महत्व रखता है। घर के कार्यों में, लेन-देन अथवा अन्य किसी हेतु खर्च करते समय यदि आप मेरी भी मंत्रणा लिया करें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं। यह वचन पूरी तरह से पत्नी के अधिकारों को रेखांकित करता है। अब यदि किसी भी कार्य को करने से पूर्व पत्नी से मंत्रणा कर ली जाए तो इससे पत्नी का सम्मान तो बढ़ता ही है, साथ-साथ अपने अधिकारों के प्रति संतुष्टि का भी आभास होता है। हमारे ऋषि-मुनियों ने इस वचन के द्वारा नारी अधिकारों की रक्षा करने का प्रयत्न किया है।
न मेपमानमं सविधे सखीना द्यूतं न वा दुव्र्यसनं भंजश्वेत
वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम।।
कन्या कहती है कि यदि मैं अपनी सखियों अथवा अन्य स्त्रियों के बीच बैठी हूं, तब आप वहां सबके सम्मुख किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे। यदि आप जुआ अथवा अन्य किसी भी प्रकार के दुव्र्यसन से अपने आपको दूर रखें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं। यह वचन मनुष्य को शराब पीने, जुआ खेलने आदि बुराईयों से बचाता है जो परिवारों में फूट के सबसे बड़े कारण हैं।
परस्त्रियं मातूसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कूर्या।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तमंत्र कन्या।।
सातवें वचन के रूप में कन्या यह वर मांगती है कि आप पराई स्त्रियों को माता के समान समझेंगे और पति-पत्नी के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को भागीदार न बनाएंगे। वर्तमान संदर्भ में सातवां वचन अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाता है। आजकल विवाहोत्तर संबंध समाज की सबसे बड़ी समस्या बन रही है। इसी कारण परिवार टूट रहे हैं और अदालतें तलाक के केसों से पट रही हैं। हमारी संस्कृति 'परदारा मातृेषु पर द्रव्य लोषढ़वत्' अर्थात परस्त्री माता के समान और पराये धन को मिट्टी के ढेले के समान बताता है। इन दोनों पर कभी बुरी नजर नहीं रखनी चाहिए। पती-पत्नी का रिश्ता विश्वास की कच्ची डोरी से बंधा होता है और जब टूटता है तो सामने वाले को मर्माहत कर देता है। अगर व्यक्ति सातवें वचन का पालन करे और महिला भी अपने जीवन में इसका व्रत ले तो परिवार टूटने का बहुत बड़ा कारण समाप्त हो सकता है।
- राकेश सैन
32-खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
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जालंधर।
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