वेदों ने जिस राष्ट्रभक्ति को ईश भक्ति, चाणक्य ने जिस राष्ट्रवाद को सर्वोच्च धर्म और स्वतंत्रता सेनानियों ने जिस देशभक्ति को अपने प्राणों से अधिक प्रिय माना 21 सदी में आकर यही भावना उलाहना बन गई लगती है। मीडिया हो या राजनीति अब इस देश, देशभक्ति आदि शब्दों को तंज के रूप में लिया जाने लगा है। किसी समय हिंदुत्व सेकुलरों के निशाने पर रहा परंतु बहुत से लोगों ने राजनीतिक मजबूरी के चलते इसके समक्ष समर्पण कर दिया है और अब उनके निशाने पर आगई है देशभक्ति। कुछ नेता व बुद्धिजीवी अपने ऊपर उठाए जाने वाले हर प्रश्न का जवाब देशभक्ति को उलाहना बना कर देने प्रयास करते हैं और यह उलाहना उस समय अधिक दिया जाता है जब सामने भाजपा या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हो।
मध्य प्रदेश के भाजपा विधायक पन्नालाल शाक्य का ने क्रिकेट खिलाड़ी विराट कोहली व अनुष्का की इटली में हुई शादी पर कह दिया कि उन्हें यह शादी संस्कार भारत में संपन्न करने चाहिए थे। निश्चित तौर पर यह आपत्तिजनक ब्यान और किसी के निजी जीवन में हस्तक्षेप है। इसे किसी भी सूरत में ठीक नहीं ठहराया जा सकता परंतु प्रश्न यह भी उठता है कि क्या एक विधायक के ब्यान को किसी राष्ट्रीय दल का विचार मान लिया जाना चाहिए और उसी को आधार बना कर देशभक्ति जैसे पवित्र भाव को कटहरे में खड़ा कर दिया जाना चाहिए? भाजपा या इस तरह के किसी भी दल या संगठन में लाखों-करोड़ों कार्यकर्ता काम करते हैं और क्या हर स्थानीय या गली मोहल्ले के नेता की बात को आधार बना कर उस दल की नुक्ताचीनी सही है? लेकिन यही कुछ हो रहा है, बड़े-बड़े संपादक व बुद्धिजीवी देशभक्ति पर व्यंगात्मक शैली में कटाक्ष कर रहे हैं। पूछा जा रहा है कि क्या विदेश में शादी करवाना देशद्रोह और अपने देश में शादी करवाना देशभक्ति है? जितना छिछोरा भाजपा विधायक का ब्यान था उतने ही छिछोरे प्रश्न पूछे जा रहे हैं।
अभी हाल ही में 6 दिसंबर को कांग्रेस के निलंबित नेता मणिशंकर अय्यर के निवास पर पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी, देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी व अन्य लोगों के बीच हुई बैठक हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान इसका न केवल जिक्र किया बल्कि कांग्रेस पार्टी से इसकी सच्चाई देश को बताने की भी मांग की। पहले तो कांग्रेस के प्रवक्ता आनंद शर्मा ने इस तरह की बैठक होने से इंकार किया परंतु बाद में सच्चाई देश के सामने लानी पड़ी। कांग्रेस पार्टी अब लोकसभा व राज्यसभा की कार्रवाईयों को इस प्रश्न पर बाधित कर रही है कि क्या किसी राजनेता को रात्रिभोज देना राष्ट्रद्रोह हो गया? भाजपा कौन होती है किसी को देशभक्ति का प्रमाणपत्र बांटने वाली?
इस तरह के प्रश्न पूछने वाले वास्तव में देशभक्ति के उलाहने की आड़ में असली प्रश्नों से बचने का प्रयास करते हैं। प्रश्न देशभक्ति या देशद्रोह का नहीं बल्कि नियमों के पालन व कूटनयन की मर्यादा से जुड़े हैं। देश पूछेगा ही कि अगर पाकिस्तान के किसी नेता को रात्रिभोज दिया जाना था तो इसकी पूर्व सूचना विदेश मंत्रालय को क्यों नहीं दी गई। बैठक के बाद भी रहस्य बरकरार क्यों रखने की चेष्टा हुई और बैठक के दौरान हुई बातचीत का विवरण सरकार को उपलब्ध क्यों नहीं करवाया गया? स्मरण रहे डा. मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल के दौरान जब अमेरिका के साथ परमाणु समझौता हुआ तो उस समय बहुत से अमेरिकी अधिकारियों व दूतों ने भाजपा नेताओं से मुलाकात की थी। भाजपा ने इन मुलाकातों में हुई हर बातचीत की जानकारी तत्कालीन सरकार को उपलब्ध करवाई। पूछना तो यह भी बनता है कि जब पाकिस्तान के साथ हर स्तर पर बातचीत बंद है तो कांग्रेस किस आधार पर वहां के पूर्व विदेशमंत्री से कश्मीर व आतंकवाद से संबंधित मुद्दों पर बातचीत कर रही थी और इस बातचीत से क्या हल निकलने वाला था? लेकिन कांग्रेस इन सभी प्रश्नों को दरकिनार कर देशभक्ति को उलाहने के रूप में प्रयोग कर पूरे मुद्दे को देशभक्त व देशद्रोह के शाब्दिक जाल में फंसाने का प्रयास कर रही है। देशवासियों को ज्ञात होगा कि जब जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में भारत के टुकड़े और आतंकी अफजल गुरु को लेकर नारे लगे थे तो इनका विरोध करने वालों को देशभक्त होने का उलाहना दिया गया था। पूरे मामले को देशभक्ति बनाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाने का प्रयास हुआ याने देश की बात करने वाले गलत और पौंगापंडित जबकि देश तोडऩे वाले नारे लोकतांत्रिक, संविधानसम्मत। आज देश व देशवासियों के हित में बात करने वालों से सबसे पहले यही प्रश्न पूछा जाता है कि क्या आप देशभक्ति का प्रमाणपत्र बांटोगे?
मध्य प्रदेश के भाजपा विधायक पन्ना लाल शाक्य जिन्हें खुद वहां प्रदेश के सभी लोग भी शायद ही जानते होंगे परंतु आज छाए हुए हैं राष्ट्रीय मीडिया में। उन पर संपादकीय व थू-थू करने वाले स्तंभ लिखे जा रहे हैं और उनकी वाचालता को देशभक्ति बता कर उलाहने दिए जा रहे हैं। कभी साक्षी महाराज की अग्निबाण चलाने वाली जिव्हा को तो कभी असमाजिक तत्वों द्वारा गौरक्षा के नाम पर कई गई गुंडागर्दी को देशभक्ति बताया जाता है और फिर उसी को आधार बना कर देशभक्ति को लांछित करने का प्रयास होता है। देशभक्ति न तो प्रमाणपत्र देने की वस्तु है और न ही उलाहने की, यह स्वस्फूर्त भावना है जो अपने देश के प्रति पैदा होती है। यह यही भाव है जो किसी युवक को भगत सिंह, राजगुरु,सुखदेव बनने को मजबूर करता है तो सर्दी-गर्मी सीमा पर खड़े प्रहरियों को संबल देता है। यह किसी एक व्यक्ति या समाज या संगठन की बपौती नहीं बल्कि हर व्यक्ति का मनोभाव है। इसका न तो किसी से प्रमाणपत्र मांगा जा सकता है और न ही इसे उलाहने के रूप में प्रयोग किया जा सकता।
- राकेश सैन
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जालंधर।
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