नहीं छुटती, जिसको आदत लगी हो बिल्कुल नहीं जाती सुबह कसम खाते हैं और सूरज ढलते ही फिर न आने की कसम खा कर मदिरालय पहुंच जाते हैं। चाहे सौ बार मंदिर जाओ, महादेव के भक्त बनो और कोट पर डाला जनेऊ दिखाओ कांग्रेस की जन्मजात आदत है मुस्लिम तुष्टिकरण की, नहीं छुटती। अपनी सरकार के कार्यकाल में शाहबानो केस दौरान कानून बना कर कठमुल्लाओं को प्रसन्न करने वाली कांग्रेस वर्तमान में तरह-तरह के बहाने बना कर तीन तलाक पर आए विधेयक का विरोध कर रही है और बाकी छद्म सैक्यूलर उसका साथ दे रहे हैं। सेक्युलरों की नजरें कहीं व निशाना कहीं है, तर्क कुछ करते हैं और वास्तव में कानून का विरोध कर मुस्लिम कट्टरपंथियों को प्रसन्न करने का प्रयास कर रहे हैं। महान शायर जोक का शेयर फिर इन पर सही बैठता दिखता है कि छुटती नहीं मुंह से काफिर लगी हुई।

तुरंत तीन तलाक या 'तलाक-ए-बिद््दत' दशकों से काफी विवादास्पद मसला रहा है। इस पर सुनवाई करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों में भी सर्वसम्मति नहीं बन पाई थी। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बावजूद आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सहित कई मुस्लिम संगठन इसका विरोध कर रहे हैं और विरोध के इन स्वरों को अपरोक्ष समर्थन मिलता दिख रहा है देश के कथित सैक्युलर दलों का। कांग्रेस का कहना है कि वह अन्य दलों के साथ मिलकर एक बार फिर से इस बिल के प्रारूप को देखना चाहती है। पार्टी प्रवक्ता और सांसद अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि वे तीन तलाक को अपराध साबित करने वाले इस बिल पर पूरी तरह सहमत नहीं हैं। उन्होंने कहा, यह देखना होगा कि सरकार अदालत के निर्णय के आधार पर ही इस बिल को पेश करे अन्यथा विरोध करेंगे। तुष्टिकरण की दूसरी झंडाबरदार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) के सांसद मोहम्मद सलीम ने कहा है कि जब अदालत तीन तलाक पर प्रतिबंध लगा चुकी है तो इस पर अलग से विधेयक की आवश्यकता नहीं है। तलाक को आपराधिक श्रेणी में नहीं डालना चाहिए। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने भी तीन तलाक पर प्रस्तावित बिल का विरोध किया है। तर्क दिया जाने लगा है कि जब तक एक से ज़्यादा विवाह करने की प्रथा को अवैध नहीं किया जाता तो पुरुष तलाकदिए बिना वही रास्ता अपनाने लगेंगे। प्रश्न उठाए जा रहे हैं कि देश में केवल मुस्लिमों को ही तलाक देने पर सजा मिलेगी, हिंदू व इसाईयों को नहीं। एक साथ तीन तलाक देने पर 3 साल की सजा होगी जो देशद्रोह व भ्रष्टाचार जैसे संगीन अपराधों के लिए तय है। यह भी कहा जा रहा है कि यह कानून धर्म की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। देश में जब अपराधिक न्यायिक संहिता (सीआरपीसी), घरेलु हिंसा विधेयक, क्रूरता विरोधी नियम हैं तो तीन तलाक पर कानून की क्या आवश्यकता है? मुस्लिम ला बोर्ड तर्क दे रहा है कि इस्लाम में विवाह सामाजिक विषय है और इस पर दिवानी मुकद्दमे (सिविल केस) ही चलते हैं न कि अपराधिक याने क्रिमिनल।
प्रथमदृष्टया बड़े तर्कसंगत लगते हैं इस तरह के प्रश्न परंतु पूरी तरह आधारहीन और मुद्दे को भटकाने वाले ज्यादा लगते हैं। न्यायालय के प्रतिबंध के बावजूद भी देश में तीन तलाक जारी हैं और इस निर्णय के बाद 68 नए मामले सामने आचुके हैं, इसीलिए ही तीन तलाक पर विधेयक जरूरी हो गया। नए कानून से तलाक की प्रकिया बंद नहीं होगी बल्कि एक ही समय तीन तलाक को दंडनीय बनाया जाएगा। इस्लाम में जारी तलाक-ए-एहसान व तलाक-ए-हसन उसी तरह जारी रहेंगे। तीन तलाक के मामले को घरेलु हिंसा अधिनियम से इसलिए नहीं निपटा जा सकता क्योंकि जब विदेश या दूरदराज इलाके में बैठा पति मोबाईल, ई-मेल, चिट्ठी से तलाक देता है तो पीडि़त महिला कै से घरेलु हिंसा के आरोपों को साबित कर पाएगी। दिवानी मामले को अपराधिक मामले में परिवर्तित करने का विरोध करने वाले भूलते हैं कि जब शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उसे भरण-पोषण भत्ता देने का आदेश दिया तो इन्हीं सेक्युलर दलों की सरकार ने अपराधिक मामले को दिवानी मामले में परिवर्तित कर संविधान में संशोधन कर दिया था। हिंदुओं में भी तो विवाह को दिवानी मामला है परंतु दहेज को अपराधिक माना गया है। हिंदू समाज में तो तलाक का प्रावधान ही नहीं है, पारस्कर गृहसूत्र और जैमिनी गृहसूत्र जो विवाह से संबंधित हैं शादी को सात जन्मों का बंधन बताते हैं। तीन तलाक को धार्मिक स्वतंत्रता के साथ जोडऩे वाले भूलते हैं कि यह विषय लैंगिक समानता का भी है जिसका अधिकार भी हमारा संविधान सभी नागरिकों को देता है। संविधान के निती निदेशक सिद्धांतों में नागरिकों को निर्देश दिया गया है कि वह महिला के सम्मान के खिलाफ किसी भी कदम का विरोध करें। विधेयक पर और चर्चा करने की बात करने वाले भूलते हैं कि इस विषय पर देश भर में 1978 से चर्चा चल रही है जब 62 वर्षीय महिला शाहबानो को उसके पति ने तलाक दे दिया और अदालत ने जब उसे न्याय देने का फैसला किया तो 1986 में तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार ने संसद में विधेयक ला कर अदालत के फैसले को ही बदल दिया। विरोधी चर्चा के नाम पर इस मामले को और लटकाने का प्रयास तो नहीं कर रहे?
तीन तलाक पर विरोधियों का स्टैंड संकीर्ण राजनीति से प्रेरित व संविधान की मर्यादा के विपरीत दिखाई दे रहा है। इससे किसी ओर को नहीं बल्कि मुस्लिम कट्टरपंथियों को ही लाभ मिल सकता है जो अपने समाज में सदियों से महिलाओं का दमन करते आरहे हैं। विधेयक का विरोध करने वालों को ध्यान में रखना चाहिए कि अपने इस दोहरे मापदंड से वो कुछ वोटें तो हासिल कर लेंगे परंतु इससे मुस्लिम महिलाओं को जो मर्माहत पीड़ा होगी उसके लिए ये सेक्युलरपंथी भी जिम्मेवार होंगे।
- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो. 097797-14324
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