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Jesus Christ |
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Rojabal in Srinagar, the grave of Jesus Christ |
अपनी भारतीय संस्कृति कहती है, दुनिया में जब-जब भी पाप बढ़ते हैं और धर्म की हानि होती है तो ईश्वर विभिन्न रूपों में अवतार लेकर धरती पर जन्म लेते हैं। गीता के चौथे अध्याय के सातवें व आठवें श्लोक में कहा गया है कि -
यदा यदा ही धर्मस्य
ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य
तदात्मानम सृज्याहम।
परित्राणाय साधूनां
विनाशाय च दुष्कृताम।
धर्म संस्थापनार्थाय
संभवामि युगे युगे ॥
भारतीय संस्कृति में ईश्वर के अवतार होने का विश्वास किया जाता है तो पश्चिम के लोग इस अवतार को ईश्वर पुत्र मानते हैं। सभी का अपना-अपना विश्वास है और सभी सम्मानित हैं। दुनिया के एक अन्य महान धर्म इस्लाम में पैगंबर परंपरा में विश्वास किया जाता है और माना जाता है कि 1.24 लाख पैगंबरों ने इस धरती पर जन्म लेकर समय-समय पर मानवता का कल्याण किया और मार्गदर्शन किया। इन्हीं अवतारों में या ईश्वर पुत्रों में या कह लें कि पैगंबरों में एक हैं प्रभु ईसा मसीह। जिन्होंने पूरी दुनिया को प्रेम, अहिंसा, सदाचार व भाईचारे का संदेश दिया। भारत को इस बात का गौरव है कि इस धरती पर राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, नानक जैसे बुद्ध पुरुषों की एक लंबी परंपरा है परंतु अभी तक इस बात पर पर्दा डाले रखे जाने का भरसक प्रयत्न हुआ है कि प्रभु ईसा मसीह ने भी अपने जीवन काल में चरणस्पर्श कर इस भारत भूमि को पवित्र किया। नवीन खोजों से पता चलता है कि उन्होंने भारत में बौद्ध व नाथ संप्रदाय के मनीषियों के मार्गदर्शन में स्वाध्याय किया और उनका पूरी दुनिया में प्रचार प्रसार किया।
प्रभु ईसा मसीह ने 13 साल से 29 साल तक क्या किया बाइबल में उनके इन वर्षों के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं मिलता। नई खोजें बताती हैं कि इस उम्र के बीच ईसा मसीह ने भारत में शिक्षा ग्रहण की। 30 वर्ष की उम्र में येरुशलम लौटकर उन्होंने यूहन्ना (जॉन) से दीक्षा ली। दीक्षा के बाद वे लोगों को शिक्षा देने लगे। ज्यादातर विद्वानों के अनुसार सन् 29 ई. को प्रभु ईसा येरुशलम पहुँचे। वहीं उनको दंडित करने का षड्यंत्र रचा गया। अंतत: उन्हें विरोधियों ने पकड़ कर सूली पर लटका दिया। उस समय उनकी उम्र थी लगभग 33 वर्ष।
रविवार को यीशु ने येरुशलम में प्रवेश किया था। इस दिन को पाम संडे कहते हैं। शुक्रवार को उन्हें सूली दी गई थी इसलिए इसे गुड फ्रायडे कहते हैं और रविवार के दिन सिर्फ एक स्त्री (मेरी मेग्दलेन) ने उन्हें उनकी कब्र के पास जीवित देखा। इस घटना को ईस्टर के रूप में मनाया जाता है। उसके बाद यीशु कभी भी यहूदी राज्य में नजर नहीं आए। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि उसके बाद ईसा मसीह पुन: भारत लौट आए थे। इस दौरान भी उन्होंने भारत भ्रमण कर कश्मीर के बौद्ध और नाथ संप्रदाय के मठों में गहन तपस्या की। जिस बौद्ध मठ में उन्होंने 13 से 29 वर्ष की उम्र में शिक्षा ग्रहण की थी उसी मठ में पुन: लौटकर अपना संपूर्ण जीवन वहीं बिताया। कश्मीर में उनकी समाधि को लेकर बीबीसी पर एक रिपोर्ट भी प्रकाशित हुई। रिपोर्ट अनुसार श्रीनगर के पुराने शहर की एक इमारत को रौजाबल के नाम से जाना जाता है। यह रौजा एक गली के नुक्कड़ पर है और पत्थर की बनी एक साधारण इमारत है जिसमें एक मकबरा है, जहाँ ईसा मसीह का शव रखा हुआ है। श्रीनगर के खानयार इलाके में एक तंग गली में स्थिति है रौजाबल।
आधिकारिक तौर पर यह मजार एक मध्यकालीन मुस्लिम उपदेशक यूजा आसफ का मकबरा है, लेकिन बड़ी संख्या में लोग यह मानते हैं कि यह नजारेथ के यीशु यानी ईसा मसीह का मकबरा या मजार है। लोगों का यह भी मानना है कि सन् 80 ई. में हुए प्रसिद्ध बौद्ध सम्मेलन में ईसा मसीह ने भाग लिया था। श्रीनगर के उत्तर में पहाड़ों पर एक बौद्ध विहार का खंडहर हैं जहाँ यह सम्मेलन हुआ था।
पहलगाम का अर्थ होता है गडरियों का गाँव। जबलपुर के पास एक गाँव है गाडरवारा, उसका अर्थ भी यही है और दोनों ही जगह से ईसा मसीह का संबंध रहा है। ईसा मसीह खुद एक गडेरिए थे। ईसा मसीह का पहला पड़ाव पहलगाम था। पहलगाम को खानाबदोशों के गाँव के रूप में जाना जाता है। बाहर से आने वाले लोग अक्सर यहीं रुकते थे। उनका पहला पड़ाव यही होता था। अनंतनाग जिले में बसा पहलगाम, श्रीनगर से लगभग 96 किलोमीटर दूर है। यही से बाबा अमरनाथ की गुफा की यात्रा शुरू होती है। मान्यता है कि ईसा मसीह ने यही पर प्राण त्यागे थे और ओशो की एक किताब गोल्डन चाइल्ड हुड अनुसार मूसा यानी यहूदी धर्म के पैंगबर ने भी यहीं पर प्राण त्यागे थे। दोनों की असली कब्र यहीं पर है।
एक रूसी अन्वेषक निकोलस नोतोविच ने भारत में कुछ वर्ष रहकर प्राचीन हेमिस बौद्घ आश्रम में रखी पुस्तक द लाइफ ऑफ संत ईसा पर आधारित फ्रेंच भाषा में द अननोन लाइफ ऑफ जीजस क्राइस्ट नामक पुस्तक लिखी। हेमिस बौद्घ आश्रम लद्दाख के लेह मार्ग पर स्थित है। किताब अनुसार ईसा मसीह सिल्क रूट से भारत आए थे और यह आश्रम इसी तरह के सिल्क रूट पर था। उन्होंने 13 से 29 वर्ष की उम्र तक यहाँ रहकर बौद्घ धर्म की शिक्षा ली और निर्वाण के महत्व को समझा।
यीशु पर लिखी किताब के लेखक स्वामी परमहंस योगानंद ने दावा किया गया है कि यीशु के जन्म के बाद उन्हें देखने बेथलेहेम पहुँचे तीन विद्वान भारतीय ही थे, जो बौद्ध थे। भारत से पहुँचे इन्हीं तीन विद्वानों ने यीशु का नाम ईसा था। जिसका संस्कृत में अर्थ भगवान होता है। एक दूसरी मान्यता अनुसार बौद्ध मठ में उन्हें ईशा नाम मिला जिसका अर्थ है, मालिक या स्वामी। हालांकि ईशा शब्द ईश्वर के लिए उपयोग में लाया जाता है। वेदों के एक उपनिषद का नाम ईश उपनिषद है। ईश या ईशान शब्द का इस्तेमाल भगवान शंकर के लिए भी किया जाता है। कुछ विद्वान मानते हैं कि ईसा इब्रानी शब्द येशुआ का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है होता है मुक्तिदाता। कुछ विद्वानों अनुसार संस्कृत शब्द ईशस् ही जीसस हो गया। यहूदी इसी को इशाक कहते हैं।
सिंगापुर स्पाइस एयरजेट की एक पत्रिका में इसी बात की चर्चा की गई थी कि यीशु को जब सूली पर चढ़ाने के लिए लाया जा रहा था तब वे बचकर भाग निकले और कश्मीर पहुँचे और बाद में वहाँ उनकी मृत्यु हो गई। उनका मकबरा कश्मीर के रौजाबल नामक स्थान में है। कैथोलिक सेकुलर फोरम नामक एक संस्था ने इस खबर का कड़ा विरोध किया। भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में इस पत्रिका के खिलाफ प्रदर्शन भी हुआ। विरोध के बाद स्पाइस एयरजेट के डायरेक्टर अजय सिंह ने माफी माँगी और कहा कि पत्रिका की करीब 20 हजार प्रतियों का वितरण तुरंत बन्द कर दिया गया है।
स्वामी परमहंस योगानंद की किताब द सेकंड कमिंग ऑफ क्राइस्ट : द रिसरेक्शन ऑफ क्राइस्ट विदिन यू में यह दावा किया गया है कि प्रभु यीशु ने भारत में कई वर्ष बिताए और यहाँ योग तथा ध्यान साधना की। इस पुस्तक में यह भी दावा किया गया है कि 13 से 30 वर्ष की अपनी उम्र के बीच ईसा मसीह ने भारतीय ज्ञान दर्शन और योग का गहन अध्ययन व अभ्यास किया।
बाइबिल के बाद ईसा मसीह का जिक्र भविष्य पुराण में मिलता है। इसमें हिमालय क्षेत्र में ईसा मसीह की मुलाकात उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के पौत्र से होने का छोटा-सा वर्णन मिलता है। इससे यह भी तय हो गया कि विक्रमादित्य के पौत्र के बाद या उसके काल में लिखा गया होगा।
लुईस जेकोलियत ने 1869 ईस्वी में अपनी एक पुस्तक द बाइबिल इन इंडिया में लिखा है कि जीसस क्रिस्ट और भगवान श्रीकृष्ण एक थे। लुईस जेकोलियत फ्रांस के एक साहित्यकार और वकील थे। इन्होंने अपनी पुस्तक में कृष्ण और क्राइस्ट पर एक तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। इन्होंने अपनी पुस्तक में यह भी कहा है कि क्राइस्ट शब्द कृष्ण का ही रूपांतरण है, हालांकि उन्होंने कृष्ण की जगह क्रिसना शब्द का इस्तेमाल किया। भारत में गांवों में कृष्ण को क्रिसना ही कहा जाता है। लुईस के अनुसार ईसा मसीह अपने भारत भ्रमण के दौरान जगन्नाथ के मंदिर में रुके थे।
लातोविच ने तिब्बत के मठों में ईसा से जुड़ी ताड़ पत्रों पर अंकित दुर्लभ पांडुलिपियों का दुभाषिए की मदद से अनुवाद किया जिसमें लिखा था, सुदूर देश इसराइल में ईसा मसीह नाम के दिव्य बच्चे का जन्म हुआ। 13-14 वर्ष की आयु में वो व्यापारियों के साथ हिन्दुस्तान आ गया तथा सिंध प्रांत में रुककर बुद्ध की शिक्षाओं का अध्ययन किया। फिर वो पंजाब की यात्रा पर निकल गया और वहां के जैन संतों के साथ समय व्यतीत किया। इसके बाद जगन्नाथपुरी पहुंचा, जहां के पुरोहितों ने उसका भव्य स्वागत किया। वह वहां 6 वर्ष रहा। वहां रहकर उसने वेद और मनु स्मृति का अपनी भाषा में अनुवाद किया।
वहां से निकलकर वो राजगीर, बनारस समेत कई और तीर्थों का भ्रमण करते हुए नेपाल के हिमालय की तराई में चला गया और वहां जाकर बौद्ध ग्रंथों तथा तंत्रशास्त्र का अध्ययन किया फिर पर्शिया आदि कई मुल्कों की यात्रा करते हुए वह अपने वतन लौट गया।
लातोविच के बाद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी अभेदानंद ने 1922 में लद्दाख के होमिज मिनिस्ट्री का भ्रमण किया और उन साक्ष्यों का अवलोकन किया जिससें हजरत ईसा के भारत आने का वर्णन मिलता है और इन शास्त्रों के अवलोकन के पश्चात उन्होंने भी लातोविच की तरह ईसा के भारत आगमन की पुष्टि की और बाद में अपने इस खोज को बांग्ला भाषा में तिब्बत ओ काश्मीर भ्रमण नाम से प्रकाशित करवाया।
लुईस जेकोलियत और निकोलस नातोविच के शोध के बाद पाकिस्तान के आध्यात्मिक गुरु मिर्जा गुलाम अहमद ने इस पर गहन शोध किया। उनके अनुसार ईसा मसीह 120 वर्ष तक जीए और कश्मीर के रौजाबल में उनकी कब्र है। कादियान के अनुसार ईसा मसीह यूज आसफ (शिफा देने वाला) नाम से यहां रहते थे। इसके लिए उन्होंने कई पुख्ता दलीलें पेश कीं। अपने तमाम शोधों को पुख्ता प्रमाणों के साथ उन्होंने मसीह हिन्दुस्तान नाम से लिखी अपनी किताब में लिपिबद्ध किया है।
सादिक ने अपनी ऐतिहासिक कृति इकमाल-उद्-दीन में उल्लेख किया है कि जीसस ने अपनी पहली यात्रा में तांत्रिक साधना एवं योग का अभ्यास किया। इसी के बल पर सूली पर लटकाये जाने के बावजूद जीसस जीवित हो गये। इसके बाद ईसा फिर कभी यहूदी राज्य में नजऱ नहीं आए। यह अपने योग बल से भारत आ गए और युज-आशफ नाम से कश्मीर में रहे। यहीं पर ईसा ने देह का त्याग किया।
पारसी परिवार में जन्में मेहर बाबा को एक रहस्यमयी और चमत्कारिक संत माना जाता है। 30 वर्षों तक मेहर बाबा मौन रहे और मौन में ही उन्होंने देह त्याग दी। उन्होंने एक किताब लिखी जिसका नाम गॉड स्पीक है। मेहर बाबा अनुसार ईसा मसीह सूली से बच गए थे। उन्होंने भारत में रहकर तप साधना की थी। जिसके माध्यम से उन्होंने सूली पर निर्विकल्प समाधी लगा ली थी। इस समाधी में व्यक्ति 3 दिन तक मृत समान रहता है। बाद में उसकी चेतना लौट आती है और उसके अंग-प्रत्यंग फिर से कार्य करने लगते हैं। आमतौर पर बहुत ज्यादा बर्फिले इलाके में भालू ऐसा करते हैं। समाधी से जागने के बाद ईसा मसीह फिर से भारत आ गए थे। यहां आकर उन्होंने रंगून की यात्रा की फिर पुन: भारत लौटकर उन्होंने अपना बाकी जीवन नार्थ कश्मीर में ही बिताया।
मेहर बाबा की बातों का अभयानंद, सत्यसाईंबाबा, शंकराचार्य, आदि ने समर्थन किया। फिदा हसनैन, अजीज कश्मीरी, जेम्स डियरडोफ, मंतोशे देवजी आदि ने भी माना है कि कश्मीर के रौजाबल में जो कब्र है वह ईसा मसीह की ही है। खैस, कोई ईसाई इसे नहीं मानता है तो यह एक ऐतिहासिक और पवित्र स्थल को खो देने की बात होगी। नहीं मानने का कोई तो ठोस कारण होना चाहिए?
एक जर्मन विद्वान होल्गर कर्स्टन ने 1981 में अपने गहन अनुसन्धान के आधार पर एक पुस्तक लिखी जीसस लिव्ड इन इण्डिया : हिज लाइफ बिफोर एंड ऑफ्टर क्रूसिफिक्शन में ये सिद्ध करने का प्रयास किया कि जीसस ख्रीस्त ने भारत में रहकर ही बुद्ध धर्म में दीक्षा ग्रहण की और वे एक बौद्ध थे।
तिब्बत में ल्हासा में दलाई लामा के पोटाला पेलेस में एक दो हजार वर्ष पुराना हस्त लिखित ग्रंथ था जिसमें ईसा मसीह की तिब्बत यात्रा का विवरण दर्ज था। इसको यूरोप के कुछ पादरियों ने तिब्बत भ्रमण के समय देखा था और उन्होंने एक पुस्तक भी लिखी थी, लेकिन प्रकाशित होने से पूर्व ही पोप को पता चल गया और तब उस पुस्तक की सभी प्रतियां नष्ट करा दी गयीं।
(साभार-कादम्बिनी अगस्त 1995)
लॉस एंजिलिस निवासीफिलिप गोल्बर्ग का एक व्याख्यान टूर भारत में आयोजित किया गया था उन्होंने 'अमेरिकन वेदÓ सहित उन्नीस पुस्तकें लिखी हैं। उन्होंने बताया की आज अमेरिकावासी नाम के लिए ईसाई हैं जबकि व्यव्हार में बहुलवादी वेदांत को अपना चुके हैं। चर्च ने सत्य को छुपाने के अनेक उपाय किए। उक्त इतने सारे तथ्य बताते हैं कि प्रभु ईसा मसीह अवश्य भारत आए होंगे और यहां अपनी आध्यात्मिक खोज का सफर तय किया होगा। भारत आज ही नहीं बल्कि युगों से धर्मध्वजावाहक भूमि के नाम से विख्यात रही है। दुनिया के हर धर्मपुरुष ने भारत भूमि का नाम बड़े सम्मान से लिया और इसे देवभूमि माना। आवश्यकता है उक्त बातों को पुष्ट कर सच्चाई को सामने लाने की ताकि दुनिया सत्य के नए प्रकाश से प्रकाशमान हो सके।
- राकेश सैन
32-खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो. 097797-14324
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