Monday, 16 April 2018

हम पाषाण युग के वासी

पुरातत्ववेत्ता व इतिहासकारों के अर्थों में चाहे पत्थरों के हथियार इस्तेमाल करने वाले युग को पाषाणयुग कहा जाता होगा परंतु वास्तव में पाषाणकाल तो आज देखने को मिल रहा है। व्यवस्था जड़ है, दिल पत्थर, दिमागों में और जुबान पर रोड़े ही रोड़े। तभी तो लोग आठ साल की बच्ची की अस्मत लूटते हैं और पत्थरों से उसका सिर कुचल देते हैं। दूसरी जगह हमारी पत्थरदिल व्यवस्था बलात्कार आरोपी विधायक को बचाने में लग जाती है और तब तक नहीें हिलती जब तक पीडि़ता की आंखें रो रो कर पथरा नहीं जाती, उसके बाप को पुलिस वाले पीट-पीट कर दो गज नीचे पत्थर की तरह गाड़ देते हैं। आप ठीक समझ रहे हैं, हम बात कर रहे हैं कठुआ और उन्नाव में हुए बलात्कार कांडों की जिसने हमें पाषाणयुग का वासी होने का एक बार फिर से एहसास करवा दिया है। चारों ओर पत्थर ही पत्थर।

उन्नाव में सामूहिक बलात्कार के एक आरोप के बाद उत्तर प्रदेश में लगा कि प्रशासन की सारी ताकत आरोपियों को बचाने में खप गई। बलात्कार के आरोप पर कार्रवाई न होने से निराश पीडि़ता ने मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्मदाह करने की कोशिश की, तब भी पुलिस को अपनी ड्यूटी निभाने की जरूरत महसूस नहीं हुई। लड़की के पिता की आरोपी विधायक के भाई और उसके साथियों ने बर्बरता पूर्वक पिटाई की। पर पुलिस ने मारपीट करने वालों के बजाय उल्टे लड़की के पिता को ही हिरासत में ले लिया जहां उसकी मौत हो गई। पहले उस पर भी पर्दा डालने की कोशिश की गई, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वजह बेरहमी से पिटाई सामने आई। सरकार के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक बात और क्या हो सकती है कि आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए उच्च न्यायालय को दो-टूक जवाब मांगना पड़ा। आखिरकार पत्थरदिल सरकार झुकी और जांच सीबीआई को सौंपनी पड़ी। सीबीआई ने आरोपी विधायक को गिरफ्तार कर लिया। विधायक की गिरफ्तारी तो हुई परंतु तब तक सरकार की संवेदनशीलता के पाषाण होने के सारे साक्ष्य समाज के सामने खुल चुके थे। 

दूसरी घटना में जम्मू क्षेत्र के कठुआ में आठ साल की बच्ची के साथ दरिंदगी और हत्या के मामले में दायर दो आरोपपत्रों में जो खुलासा हुआ है, वह विभत्स और शर्मनाक है। दुखद है कि मामले को अब पूरी तरह से सांप्रदायिक रंग दे दिया गया है। हैरानी वाली बात तो यह भी है कि इस पूरी घटना को अंजाम देने में पुलिस न केवल अपराधियों के साथ मिली रही, बल्कि आपराधिक कृत्य में भी भागीदार बनी। घटना इस साल दस जनवरी की है जब बक्करवाल समुदाय की आठ साल की एक लड़की को कुछ लोगों ने अगवा कर एक मंदिर में छिपा लिया था और वहां उसके साथ कई बार सामूहिक बलात्कार बाद उसकी हत्या कर दी गई। शव को जंगल में फेंक दिया गया और उसके सिर को पत्थर से कुचल दिया गया। पुलिस ने कहा है कि घटना का असली साजिशकर्ता मंदिर का पुजारी था, जिसने अपने बेटे, भतीजे, पुलिस के एक एसपीओ और उसके दोस्तों के साथ हफ्ते भर इस जघन्य अपराध को अंजाम दिया। इसके अलावा, दो पुलिसवालों ने पुजारी से घटना के सबूत करने नष्ट करने के लिए चार लाख रुपए लिए। चौंकाने वाली बात तो यह है कि आरोपियों के समर्थन में रैली निकाली गई और बंद रखा गया। आरोपी डोगरा समुदाय के हैं। कुछ वकीलों ने पुलिस को आरोपपत्र दाखिल करने से रोकने की कोशिश की।

विश्वास नहीं होता कि हम उस पुण्यभूमि के निवासी हैं जिस पर उस भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण ने जन्म लिया जिसने शासकों के लिए लोकलाज को इतना महत्त्वपूर्ण बताया कि एक धोबी के कहने पर पत्नी तक का त्याग कर दिया और दूसरा द्रोपदी की वेदना पर सबकुछ छोड़ कर सुदर्शन सहित कौरव सभा में भागे चला आया। आज के शासक व राजकर्मी तो दुषासन के ही भाई लगने लगे हैं। माना कि केवल आरोप लगाने से कोई अपराधी नहीं बन जाता परंतु यह पुलिस की ड्यूटी है कि वह आरोपों पर तुरंत कार्रवाई करे। आरोपी चाहे जो हो उसे पर कानून अनुसार सबक सिखाए। यूपी में तो लगता है कि सारी सरकार व प्रशासन आरोपी विधायक के सामने नत्मसत नजर आरही है। ऐसा करते हुए वहां की सरकार यह भूल रही है कि इसी गुंडागर्दी के खिलाफ कानून व्यवस्था के एजेंडे पर भाजपा सरकार सत्ता में आई थी। अगर आरोपियों को यूं ही बचाया जाना था तो समाजवादी पार्टी की सरकार क्या बुरी थी जिसके मुखिया मुलायम सिंह यादव ने बलात्कार के एक केस के बाद कहा था कि लड़कों से गलती हो ही जाती है। आरोपी विधायक पर जब अपहरण व दुराचार और पोसको अधिनियम के तहत केस दर्ज हो चुके थे तो उसकी गिरफ्तारी में विलंब क्यों किया गया और क्यों उसके लिए तरह-तरह की बहानेबाजी की गई? इससे साफ संकेत गया कि सरकार आरोपियों को बचाने का प्रयास कर रही है। अब उसकी गिरफ्तारी से यही साबित होता है कि योगी सरकार ने प्याज भी खाए और छित्तर भी परंतु अंत में कार्रवाई भी करनी पड़ी।

उन्नाव की घटना ने न केवल यूपी की योगी सरकार की छवि को दागदार किया बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की भी छिछालेदरी की है। पार्टी इसे स्थानीय या प्रदेश से जुड़ा मुद्दा मानती है तो यह भयंकर भूल होगी क्योंकि जिस तरीके से राष्ट्रीय मीडिया ने इसे उठाया है मुद्दा न केवल प्रदेशों बल्कि देशों की सीमाओं को भी लांघ गया। कठुआ कांड पर तो संयुक्त राष्ट्र तक को आह भरनी पड़ी है। यह देश के लिए अत्यंत शर्मनाक हादसे हैं। कहते हैं कि एक बार लक्ष्मी ने विष्णु जी से पूछा कि आपने त्रेतायुग में तो जटायू जैसे पक्षी का भी अंतिम संस्कार व तर्पण किया परंतु द्वापर में जीवंत धर्म के मार्ग पर चलने वाले शरशैया पर पड़े भीष्म पितामह के मुंह में पानी तक भी नहीं डाला, यह काम अर्जुन से करवाया। इस पर विष्णु जी ने कहा कि जटायु माता सीता के रूप में महिला की रक्षा के लिए यह जानते हुए भी रावण से भिड़ गया कि वह उससे जीत नहीं पाएगा परंतु सामथ्र्यशाली भीष्म द्रोपदी का चीरहरण होते देखते रहे। जो पुरुष संकटग्रस्त महिला की रक्षा नहीं कर सकता वह मुझे प्रिय नहीं है। हमारी सरकारों व राजनीतिक दलों को भी समझना चाहिए कि देश की जनता सबकुछ सहन कर सकती है परंतु बहन बेटियों की इज्जत से खिलवाड़ किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं है।
- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा, 
जालंधर।
मो. 097797-14324

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