इराक के मोसूल इलाके में 39 निर्दोष व मासूम भारतीयों की मौत की ने हर भारतीय को भीतर तक झकझोर कर रख दिया। विदेश राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह जब ताबूतों को लेकर अमृतसर पहुंचे तो राष्ट्रव्यापी शोक फैल गया। रोटी के लिए मिट्टी से अलग होना तो अभी तक सुनते आरहे थे परंतु पगलाए खूनी जिहाद के चलते अब रोटी कमाने गए गरीब घरों के कमाऊ पूत मिट्ट बन कर लोटे थे। हर किसी की आंख में आंसू, जुबां पर क्रंदन और मनों में एक जैसे ही सवाल थे कि विदेश जाने की ललक आखिर कहां जाकर समाप्त होगी? इस ललक के चलते कब तक हमारे नौजवान लालची ट्रैवल एजेंटों के झांसे में आकर अपनी जान जोखिम में डालते रहेंगे? स्वजों के बीच ही रहते हुए मेहनत मजदूरी कर सम्मानजनक व सुरक्षित जीवन यापन करने का महत्त्व हम कब जानेंगे? खाड़ी देशों के सफर में रोजगार की मंजिलों के खतरे सदा रहे हैं। मामले को लेकर राजनीतिक बयान भी आए मगर एक सत्य यह है कि हमारे सत्ताधीश देश में इन युवाओं को रोजगार देने में नाकाम रहे जिसके चलते उन्हें जान जोखिम में डालकर इराक जाने को बाध्य होना पड़ा। मोसुल की घटना ने अनेक सवालों को जन्म दिया है जिनका निराकरण करना पूरे देश विशेषकर पंजाब को बहुत जरूरी है।
क्या है पूरा मामला
इराक के मोसुल इलाके में पूरी दुनिया को इस्लाम के परचम तले लाने के पागलपन के शिकार आईएसआईएस ने कब्जा कर लिया और 91 लोगों का अपहरण कर लिया। इनमें 51 बंगलादेशियों को तो मुसलमान होने के चलते छोड़ दिया गया परंतु भारतीयों को हिंदू-सिख होने के चलते आतंकी अपने साथ ले गए। इस बीच हरजीत मसीह नामक भारतीय युवक अपने आप को अली बता कर वहां से बचने में सफल रहा। यह घटना जून, 2014 की है। भारत लौट कर हरजीत मसीह ने दावा किया कि आतंकियों ने उनके सामने इन भारतीयों को मार दिया परंतु उसने बार-बार इतने ब्यान बदले कि सरकार को उस पर विश्वास करना मुश्किल हो गया। हरजीत के दावे के विपरीत अपहृत लोगों की परिवार वालों से फोन पर बातचीत के दावे भी किए जाते रहे।
अभिभावक बनी भारत सरकार
पूरे मामले में भारत सरकार का नजरिया अभिभावकों जैसा रहा, जिस तरह माता-पिता अपने बच्चों की फिक्र करते हैं उसी तरह केंद्र सरकार ने भी इन लापता लोगों को ढूंढने व वापिस लाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मोसुल के आईएसआईएस से मुक्त होने के अगले ही दिन विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह इराक गए। वे इससे पहले भी कई बार वहां जा चुके हैं। आखिर राडार से देखा गया कि मोसुल की पहाडिय़ों पर कुछ कड़े गिरे हुए थे। उसी के जरिए भारतीयों की प्राथमिक पहचान हुई और पहाड़ी के नीचे लंबे बालों वाली लाशें मिलीं। वहां करीब 10,000 लाशों की कब्रगाह है। उनमें से 39 भारतीयों की पहचान की गई। कड़ों के अलावा, आईकार्ड से भी पहचान की गई और डीएनए टेस्ट भी किए गए। जब इन प्रक्रियाओं से गुजरते हुए भारतीयों की हत्या की पुष्टि हो गई तो विदेश मंत्री ने राज्यसभा को सूचना दी। केवल इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने इन मृत भारतीयों के अवशेष भारत लाने के लिए पूरी प्रतिबद्धता दिखाई और मृतकों के परिजनों को दस-दस लाख रूपये की सहायता राशि की भी घोषणा की।
देश लाशें गिन रहा था और कांग्रेस वोट
पूरे मामले पर जहां देश गमगीन था और अपने बेटों की लाशें गिन रहा था तो वहीं कांग्रेस पार्टी इस पूरे मसले पर वोटों का हिसाब-किताब लगाती दिखी। सवाल यह भी है कि राज्यसभा में कांग्रेस ने मंत्री का बयान होने दिया। पूरा ब्यौरा संसद के रिकार्ड में दर्ज हो गया लेकिन लोकसभा में ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस सांसदों ने हंगामा क्यों किया? लोकसभा अध्यक्ष सुमित्र महाजन को बार-बार यह क्यों कहना पड़ा कि इतने संवेदनहीन मत बनिए। ऐसी राजनीति मत करिए। क्या यह मुद्दा भी हंगामे का था? भारत सरकार ने यमन, सूडान, पाकिस्तान में भी अभियान चलाकर न केवल भारतीयों को मुक्त कराया है बल्कि कई अन्य देशों के नागरिक भी छुड़ाए हैं। इस बार ऐसा नहीं हो सका क्योंकि आईएस ने बंधक बनाया था और पूरा इलाका इन्हीं आतंकियों के कब्जे में था। यहां तक कि यहां से इराक की सेना को भी पलायन करना पड़ा था। ऐसे हालातों में भारत वहां की सरकार के सहयोग के बिना कुछ नहीं कर सकता था। जैसे ही आतंकियों का यहां से कब्जा हटा, भारतीय विदेश राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह अगले ही दिन पहुंच गए इराक। अपने देश के नागरिकों के प्रति संवेदनशीलता का यह अनुकरणीय उदाहरण है।
विपक्ष के गुमराह करने वाले आरोप
आईएसआईएस आतंकी संगठन और सरगना बगदादी की इस दरिंदगी की पुष्टि होने के बाद ही विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद को बताया। कांग्रेस कहती है कि विदेश मंत्री से गलती हुई। वह संसद और देश को झूठा दिलासा देती रहीं और भ्रम में रखा। लेकिन सवाल यह है कि यदि विदेश मंत्री पहले ही लापता भारतीयों को मृत घोषित कर देतीं और हरजीत की तरह कोई जिंदा लौट आता, तो उसकी सजा क्या होती? कौन भुगतता वह सजा..? कानून का उल्लंघन होता और संसद की अवमानना होती। सरकार की छीछालेदार होती और दुनिया में भारत की थू-थू होती। दरअसल कानून में भी स्पष्ट प्रावधान है कि एक लापता व्यक्ति को 7 साल तक मृत घोषित नहीं किया जा सकता, यानी लौटने की उम्मीद रहती है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज उन 39 भारतीयों के परिजनों को यही ढाढस बंधाती रही लेकिन मौजूदा सवाल यह है कि भारत सरकार ने जो अनथक प्रयास किए, उन्हें किस श्रेणी में रखेंगे?
विदेश जाने की अंधी दौड़
पंजाब में विदेश जाने की अंधी दौड़ का इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि जालंधर के पास तलहन में ऐसे गुरुद्वारे भी हैं जहां माना जाता है कि खिलौना जहाज का मॉडल चढ़ाने से जल्द वीजा लग जाता है। इस गुरुद्वारा साहिब में हर रोज सैंकड़ों जहाज चढ़ावे के तौर पर चढ़ते हैं। शिक्षित, अर्धशिक्षित और अशिक्षित हर वर्ग के लोगों में विदेश जाने की ललक है। एक बार तो दुस्साहसपूर्ण समाचार मिला कि ट्रैवल एजेंट ने एक युवक को जहाज के कैबिन में ठूंस कर फ्रांस भेज दिया जहां वो पकड़ा गया। यहां तक कि कुछ लोग तो विदेश जाने की मृगतृष्णा में इतने अंधे हो जाते हैं कि भाई-बहन या भाभी-देवर भी पति-पत्नी के दस्तावेज बना कर बाहर जाने का प्रयास करते पकड़े गए हैं। अपने बच्चों को विदेश भेजने की होड़ में एनआरआई दूल्हा-दुल्हन की सिरकाट मांग है। कहने का भाव कि लोगों के लिए विदेश जाना महत्त्वपूर्ण हो गया है चाहे इसके लिए कोई भी रास्ता अपनाना पड़े वे पीछे नहीं हटते। इसके लिए चाहे पिता-पुरखी जमीन बेचनी पड़े या फिर मां या पत्नी के गहने या फिर उठाना पड़े कर्ज किसी बात का संकोच नहीं किया जाता।
फर्जी ट्रैवल एजेंटों का मकड़ जाल
जिस प्रांत के लोगों में विदेशी सरजमीं के प्रति इतना अनुराग हो तो स्वभाविक है इस प्रवृति का लाभ उठाने वाले भी सक्रिय हो जाते हैं। पंजाब में विशेषकर दोआबा व माझा इलाके में ट्रैवल एजेंटों का मकडज़ाल फैला है। यहां के समाचारपत्र हर रोज इन्हीं तरह की खबरों से भरी रहते हैं कि विदेश जाने के नाम पर इतने लाख ठगे, फ्रांस बजाय भेज दिया मलेशिया इत्यादि इत्यादि। कहना गलत न होगा कि इन लोगों के संपर्क विदेश विभाग व विदेशी दूतावासों से भी हैं जिनके सहयोग से यह अपने काम को अंजाम देते हैं। भोले-भाले बेरोजगार युवाओं से लाखों रुपये ठगने के बाद इन्हें किसी न किसी तरह उन देशों में भेज दिया जाता है जहां आव्रजन नियम इतने सख्त नहीं। इन्हीं देशों के रास्ते बड़े व विकसित देशों में इनकी घुसपैठ करवाई जाती है। जानवरों की तरह इन्हें कंटेनरों में ठूंस कर या भेड़-बकरियों की तरह नावों में लाद कर खतरनाक समुद्र पार करवाए जाते हैं।
मालटा बोट कांड
अवैध तरीकों से विदेश जाने वालों को किस कदर ले जाया जाता है इसका उदाहरण है मालटा बोट कांड जिसमें पंजाब के 283 युवक समुद्र में डूब कर मारे गए थे। लगभग 22 साल पहले दिसंबर 1996 में इटली के पास हुई बोट दुर्घटना में किश्ती डूब गई और इस पर भेड-बकरियों की तरह सवार 283 भारतीय युवा मारे गए। अभी तक इनके अवशेषों को पूरी तरह ढूंढा नहीं जा सका है और न ही आरोपियों को सजा दिलवाई जा सकी है। दुर्भाग्य की बात है कि इतने बड़े दुखांत के बाद भी यहां की सरकारों ने कुछ सीखा नहीं। आज भी उसी तरह के ट्रैवल एजेंटों की दुकानदारी पहले की तरह केवल चल ही नहीं रही बल्कि दिन-दोगुनी और रात चौगुनी तरक्की भी कर रही है।
अवैध रूप से गए लोगों का शोषण
कमाई की लालच में लोग आर्थिक संकट व जोखिम झेलते हुए विदेश चले तो जाते हैं परंतु वहां जाकर उनकी परेशानियां कम नहीं होतीं बल्कि बढ़ती ही हैं। वहां की कंपनियां व निजी लोग जान जाते हैं कि उक्त लोग अवैध तरीके से उनके देश आए हैं। वे इसका पूरा लाभ उठाते हैं। अवैध मजदूरों से जरूरत से अधिक काम लिया जाता है और आधे से कम वेतन दिया जाता है। इनके पास्पोर्ट तक जब्त कर लिए जाते हैं, उन्हें शारीरिक व मानसिक वेदना दी जाती है। अरब देश में गए कई लोगों को केंद्र सरकार के प्रयासों से लोगों को अवैध हिरासत से छुड़वाया गया है। दूतावास के रिकार्ड में न होने के कारण सरकारें भी इनको लेकर बहुत कुछ कर नहीं पातीं। अगर मोसुल में गए लोग वैध तरीके से रह रहे होते तो भारत सरकार इन्हें उसी तरह सुरक्षित ले आती जैसे कि केरल की नर्सों को सुरक्षित लाया गया क्योंकि वैध तरीके से गए लोगों का रिकार्ड व संपर्क उस देश में स्थित भारतीय दूतावास से रहते हैं जिसके आधार पर समय रहते उन्हें सहायता उपलब्ध करवाई जाती है।
स्वरोजगार अपनाएं युवा
विदेशों में धक्के खाने, वहां के लोगों की गुलामी करने व जीवन जोखिम में डालने की बजाय देश के युवा अपने देश में परिवार के साथ रह कर ही अपना, अपने परिवार, देश का विकास करे तो ज्यादा उचित होगा। इसके लिए केंद्र सरकार ने स्टार्ट अप योजना, स्टैंड अप योजना, मुद्रा योजना, प्रधानमंत्री रोजगार योजना, अल्पसंख्यकों के लिए स्वरोजगार योजना सहित अनेक तरह की स्कीमें शुरू की हैं जिसको अपना कर वे न केवल आप बारोजगार हो सकते हैं बल्कि देश में ही रोजगार के मौके बढ़ा सकते हैं। अपनी योग्यता, सामथ्र्य व साधनों के अनुसार स्वरोजगार अपना कर विदेश जाने की जरूरत को काफी कम किया जा सकता है।
वैध तरीके से जाएं विदेश
जैसे कि विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह ने कहा है कि विदेश जाना बुरी बात नहीं है परंतु युवा कानूनी तरीके से और पूरे दस्तावेजों के आधार पर बाहर जाएं। इसके लिए आवश्यक है कि युवा अपने भीतर कौशल पैदा करें, किसी एक काम में प्रशिक्षण प्राप्त करें और उसी के आधार पर विदेश जाएं।
- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो. 097797-14324
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