अत्याचारी मुगल शासक औरंगजेब, आतंकवादी अफजल गुरु, मुंबई हमले के आरोपी कसाब जैसे खलनायकों का महिमामंडन सुनने के बाद देशवासियों को अपने कान वामपंथियों के नए नायक महमूद गजनी का गुणगान सुनने के लिए भी साफ कर लेने चाहिएं। जी हां, वही 10 वीं शताब्दी का लुटेरा गजनी जिसने बार-बार भारत को लूटा, हमारे प्रिय सोमनाथ मंदिर का विध्वंस किया। वामपंथी इतिहासकार रोमीला थापर उसे नायक के रूप में पेश करने की तैयारी कर रहीं हैं। रोमीला को शुरू से ही विश्वास है कि महमूद को सबने, विशेष कर हिंदुओं ने गलत समझा। अलबेरूनी से लेकर मीनाक्षी जैन तक, एक ह•ाार साल से इतिहासकारों ने उसका भ्रामक चित्रण किया। महमूद कत्लोगारत मचाने वाला, मंदिरों-मूर्तियों का विध्वंसक, हिंदुओं का उत्पीड़क और इस्लामी गाजी नहीं था- इसमें तो रोमीला को कभी संदेह नहीं रहा, किंतु तब वह था क्या ? इसी खोज में लगी हैं रोमीला।
उनकी इस खोज का एक आकलन है उनकी पुस्तक 'सोमनाथ, मेनी वॉयसेज ऑफ ए हिस्टरी'। इसमें थापर ने अनेक अनुमानों, किंवदंतियों को इक_ा किया है ताकि महमूद के माथे से सोमनाथ विध्वंस का कलंक हटाने का उपाय हो। थापर के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण सवाल इस प्रकार था, ठीक-ठीक किस वर्ग ने सोमनाथ मंदिर का विध्वंस किया था और कौन वर्ग इससे प्रभावित हुए थे ? इन वर्गों के बीच क्या संबंध थे और क्या ये हर ऐसी क्रिया से बदलेे भी थे ? क्या यह मुसलमानों द्वारा हिंदू मंदिर अपवित्र करने का मामला था या कोई और उद्देश्य था ? क्या मजहबी वाहवाही पाने के अलावा किसी और मकसद से ऐसी घटनाओं को जान-बूझकर बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया ?
इस सवाल को ध्यान से पढ़ें। सवाल रखने की चतुराई में ही मनचाहा उत्तर निहित है। महमूद ने अकेले तो सोमनाथ का ध्वंस किया न होगा, वह जरूर कोई वर्ग होगा। सोमनाथ विध्वंस को मामूली घटना बताने, उसमें महमूद की भूमिका को कम करने, यहां तक कि उसे सद्भाव-प्रेरित बताने की गरज से रोमिला थापर ने गल्प-लेेखन और इतिहास का भेद मिटा दिया। उन्होंने महमूद के बारे में अंतर्विरोधी कथाओं को भी समान आदर से रखा है। उनका मानना है कि महमूद कोई मंदिर तोडऩे थोड़े ही आया था, वह तो किसी इस्लाम से पहले अरब में पूजी जाती किसी देवी की मूर्ति ढूंढता आया था जिसे खुद पैगंबर ने तोडऩे का हुक्म दिया था। अब कहीं वह सोमनाथ मंदिर में रही हो, तो महमूद बेचारा क्या करता! एक मुसलमान के लिए किसी देश पर हमलेे का यह बिल्कुल उचित कारण था!
आगे रोमिला की दूसरी कथा है। महमूद केवल धन लूटने आया था, क्योंकि उसे साम्राज्य-विस्तार करना था। इसके लिए फौज चाहिए थी। फौज के लिए धन चाहिए था। अत: राज्य का विस्तार, न कि मंदिर-ध्वंस उसका उद्देश्य था। फिर भारत की लूट से उसने गजनी में मस्जिद और लाइब्रेरी भी बनवाई! क्या अब भी कोई उसे दोषी मानेगा ? बल्कि शायद यह हुआ होगा कि महमूद के जरखरीद सिपाहियों में हिन्दू भी रहे होंगे। हो सकता है, सोमनाथ ध्वंस में उन्हीं का हाथ हो।
रोमिला का हिसाब है कि गजनी द्वारा भारत पर चढ़ाई के बाद की सदियों में भारत की बड़ी तरक्की हुई। महमूद की शरारतों (हमले नहीं) को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता रहा है। नहीं तो, डेढ़ ही सदी बाद लिखे गए पृथ्वीराज रासो में सोमनाथ विध्वंस का जिक्र क्यों नहीं मिलता? जैन पुराणों और संस्कृत अभिलेखों में भी इसका मामूली ही fजक्र क्यों है? इसके माने कि सोमनाथ विध्वंस कोई बड़ी बात नहीं रही होगी। संभवत: उसका बार-बार ध्वंस होता रहा हो, स्वयं हिन्दुओं ने भी उसका कई बार ध्वंस किया हो। वैसे भी, हिंदुओं द्वारा मंदिर तोडऩे की पुरानी परंपरा रही है। अब इसका प्रमाण मत मांगिए। जेएनयू के माक्र्सवादियों से उनकी जानकारी का स्रोत पूछना उनकी तौहीन करना है। रोमिला ने जो कह दिया, उसे मानो वरना तुम उजड्ड हो, बात करने लायक नहीं। उसी प्रकार, यदि अफजल निर्दोष है, तो है। बस! इसे नहीं मानने वाले असहिष्णु, सांप्रदायिक, फासिस्ट हिन्दूवादी हैं। धन्य है रोमिला थापर और उनका इतिहास ज्ञान।
- राकेश सैन
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