दीवारों के कान होते हैं तो सुना था, परंतु इस माह पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला की दीवारें बोलती भी दिखीं। देशविरोधी गतिविधियों के चलते कुख्यात जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की तर्ज पर 7 सितंबर को पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला में वामपंथी छात्र संगठन पंजाब स्टूडेंट्स यूनियन (ललकार) व डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स आर्गेनाइजेशन (डीएसओ) ने देश विरोधी पोस्टर लगाए। इनमें जहां कश्मीर को कथित तौर पर आजाद करने, भारतीय शासकों द्वारा धोखे से कश्मीर पर कब्जा करने, भारतीय सेना पर आतंकवाद विरोधी कार्रवाई के बहाने कश्मीरी औरतों के साथ कथित दुराचार करने जैसी पाकिस्तान द्वारा दुष्प्रचारित बातें लिखी गई हैं। साथ में लिखा है कि भारत की एकता-अखण्डता अगर कश्मीर में जुल्म पर टिकी है तो यह पोस्टर लगाने वालों को कतई मंजूर नहीं है। इसके अलावा सभी विद्यार्थियों को पर्चे भी बांटे गए, जिसमें कश्मीर की कथित आजादी के समर्थन में रोष मार्च निकालने की बात की गई।
इसकी सूचना अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के छात्र नेताओं को मिली जिन्होंने तुरंत इसकी जानकारी विश्वविद्यालय प्रशासन को दी। कुछ किंतु परंतु के बाद प्रशासन ने इन पोस्टरों को वहां से हटवा दिया। अगले दिन फिर विश्वविद्यालय में इस तरह के आपत्तिजनक पोस्टर लगा दिए गए जिनका अभावि परिषद् ने विरोध किया। परिषद् के महासचिव मनीष कुमार व अंकित राणा के नेतृत्व में विद्यार्थियों ने इन पोस्टरों को फाड़ दिया। पोस्टरों को फाड़ते समय वामपंथी छात्र संगठनों के कार्यकर्ता भी मौके पर पहुंच गए और दोनों पक्षों में खूब तकरार हुई। पुलिस के हस्तक्षेप के बाद टकराव टला।
पंजाब में पंजाबी भाषा व साहित्य को प्रोत्साहन देने के लिए 30 अप्रैल, 1962 को अस्तित्व में आए इस विश्वविद्यालय ने शिक्षा, साहित्य, अन्वेषण, ललितकला सहित अनेक क्षेत्रों में देश की बहुत सेवा की है। चूंकि जन्म के समय राज्य में वामपंथी आंदोलनों व नक्सली गतिविधियों की बहुतायत के चलते यहां पर भी एक विचारधारा ने अपने पंजे गाड़ दिए जो अभी तक विश्वविद्यालय की छाती में फांस बन जमे हुए हैं। प्रगतिशीलता के नाम पर इस विश्वविद्यालय में ऐसी विचारधारा का पोषण किया जिसके लिए भारत एक संपूर्ण राष्ट्र न हो कर कई राष्ट्रीयताओं का समूह है। यही विचारधारा इन कथित अलग-अलग राष्ट्रों को विखण्डित करने के प्रयास भी करती रही है। चाहे हिंसक नक्सलवादी आतंकवाद हो या 1970 के दशक पंजाब में विषबेल की भांति पनपी अलगाववादी विचारधारा, इस विश्वविद्यालय में इनको खूब खाद पानी मिला। इसका प्रमाण है कि कुख्यात नक्सली आतंकी व प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) पोलित ब्यूरो का सदस्य कोबाड गांधी अपनी जाली पहचान पर विश्वविद्यालय में व्याख्यान देता रहा है। कोबाड गांधी के खिलाफ पटियाला की पुलिस ने अवैधानिक गतिविधि निरोधक अधिनियम की धारा 10, 13, 18 और 20 व भारतीय दंडावली की धारा 419 व 120-बी के तहत केस दर्ज किया हुआ है। मामला स्थानीय अदालत के विचाराधीन है। इसके अतिरिक्त यहां के विद्यार्थी और भी बहुत सी इस तरह की गतिविधियों की शिकायतें करते आए हैं। जिस विश्वविद्यालय में कोबाड गांधी जैसे आतंकी मार्गदर्शक रहे हों वहां पर उपजी पौध से इस तरह के आपत्तिजनक पोस्टरों की ही अपेक्षा की जा सकती है।
पंजाब में चुनावों के चलते बढ़ी राजनीतिक गतिविधियों के चलते विभिन्न नेताओं के प्रलाप मोटी-मोटी सुर्खियों में प्रकाशित करने वाले राज्य के मीडिया के एक बड़े वर्ग ने इतनी आवश्यकता भी नहीं समझी कि राष्ट्रहित से जुड़े इस मुद्दे की सूचना तक प्रकाशित की जाए। कुछ-एक समाचारपत्रों को छोड़ कर समस्त मीडिया ने इतने बड़े समाचार को मानो 'ब्लैकआऊट' कर दिया। मीडिया के इस वर्ग को भी आत्मविश्लेषण की जरूरत है।
चाणक्य के अनुसार, जो अध्यापक अपने विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता व राष्ट्र के प्रति गौरव की भावना का विकास नहीं कर पाए वह असफल है, परंतु मेरा पक्का विश्वास है कि पंजाबी विश्वविद्यालय का अध्यापक अभी पूरी तरह असफल नहीं हुआ है। संभव है कि वह दिग्भ्रमित हो या मुद्दे की गंभीरता को नहीं समझ पाया हो,परंतु अब भी समय है कि इस विश्वविद्यालय को संभाला जाए और यहां पनप रही राष्ट्रविरोधी विषबेल को जड़ से उखाड़ फेंका जाए। - राकेश सैन
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