Friday, 11 May 2018

मीडिया को कोसें नहीं, अपनी सहभागिता बढ़ाएं

मीडिया समाज का प्रभावशाली अस्तित्व बन चुका है परंतु मीडिया के बारे में समाज के बड़े वर्ग के मन में कुछ धारणाएं हैं। कुछ लोगों को लगता है कि मीडिया केवल शहरों तक ही सिमटा है। कुछ कहते हैं कि मीडिया बिकाऊ और पक्षपाती है। बहुत से लोग मीडिया की विश्वसनीयता पर कई सवालिया निशान लगाते रहते हैं, परंतु ये धारणाएं पूरी तरह सत्य नहीं है। अगर हमें मीडिया के कुछ हिस्से से शिकायत है तो क्या इस मीडिया को सही ढंग से क्रियान्वित करने में क्या हम कुछ नहीं कर सकते? क्या समाज की इस विसंगती को दूर करना समाज की •िाम्मेवारी नहीं है ? प्रश्न उठता है कि यह दुरूह सा लगने वाला काम कैसे हो।
सबसे पहले तो इसके लिए मीडिया की केवल और केवल आलोचना करने के बजाय समाज को इसमें अपनी सहभागिता बढ़ानी होगी। समाचार पत्रों को पढऩा, उनमें जो बातें प्रकाशित हुई हैं उन्हें पढ़ कर अपने मन में जो प्रतिक्रिया आती है, उसे संपादक को लिख कर हम भेज सकते हैं। प्रत्येक समाचार पत्र में पाठकों के पत्रों का एक स्तंभ होता है। इस स्तंभ में प्रकाशित पत्रों का असर पाठकों के साथ-साथ संपादकों पर भी होता है। पाठकों का मत निश्चित करने में, सम्पादकों का पूर्वाग्रह दूर करने में, सही जानकारी पाठक एवं सम्पादक तक पहुंचाने में पाठकों के पत्र कारगर साबित होते हैं। क्या हम अपनी सरल भाषा में हमारी बातें, हमारी प्रतिक्रिया, हमारे आस-पास स्थित समस्याओं के बारे में एक पत्र नहीं लिख सकते? हर सप्ताह आठ-दस पंक्तियों का एक पत्र लिखकर समाचार पत्र को भेजने का काम करना हरेक व्यक्ति के लिए मुश्किल नहीं है। राजनीतिक, सामाजिक गतिविधियों की चर्चा से लेकर हमें अच्छे लगने वाले समाचार या घटना की प्रशंसा और गलत ची•ाों की आलोचना तक कई विषय हम पत्र लिखने के लिए चुन सकते हैं। ऐसे पत्रों के लिए हमारा साहित्यिक भाषा में प्रवीण होना, लिखने में पारंगत होना •ारूरी नहीं है। साधारण से साधारण भाषा शैली में भी यह काम किया जा सकता है।
हम रो•ा टीवी देखते हैं। उसमें कई बातें ऐसी होती हैं जो हमें $गलत लगती हैं। फिर भी हम टीवी देखते हैं, मन में जो नारा•ागी आती है उसे प्रकट न करते हुये हम छोड़ देते हैं। हरेक टीवी कार्यक्रम में बार-बार एक घोषणा आती रहती है कि अगर इस कार्यक्रम में आपको कुछ आपत्तिजनक लगता है तो किसी एक वेबसाईट पर या किसी फोन नंबर पर आपका मत प्रकट करें। मीडिया में ऐसी $गलत बातें आती रहेंगी, तो समाज पर उनका बुरा असर भी तो पड़ता रहेगा, जो हमारे समाज और देश के लिए नुकसानदेह होगा। इसे रोकना भी तो देशभक्ति ही है। इसलिए हमें कार्य प्रवीण होकर ऐसे विषयों पर तुरन्त अपनी प्रतिक्रिया देनी होगी। टीवी दर्शक मंच बनाकर सामूहिक रूप से या निजी रूप से भी हम यह सब कर सकते हैं।
हमारे गांव में अनेक अच्छी, प्रेरक बातें, घटनाएं घटती हंै, लेकिन वे समाचार के रूप में मीडिया में आती नहीं, क्योंकि वे मीडिया तक पहुंचती ही नहीं। अपने गांव में अच्छा काम करने वाले व्यक्ति, संस्था, गांव में उत्पन्न कोई गंभीर समस्या, किसी भी व्यक्ति की असाधारण सफलताएं, कृषि के क्षेत्र में किसी किसान द्वारा हासिल की गई कुछ असाधारण उपलब्धियां जिन्हें अन्य लोग भी अनुसरण कर सकते हैं, सामाजिक दृष्टिकोण से प्रेरक घटनाएं, क्या हम समाचार पत्रों तक पहुंचा सकते हैं ? अनेक पत्रिकाएं समाज में अच्छी बातें, समस्याएं, प्रेरक घटनाएं प्रकाशित करने के प्रयास में लगी हुई रहती हैं। क्या हम उनको पहचान कर उनके कार्य में अपने गांव की सूचनाएं भेज कर सहायता कर सकतें हैं ?
इस माह कृष्ण द्वितीया को पूरी दुनिया में देवर्षि नारद जी की जयंती मनाई जा रही है। नारद जी ज्ञान के साथ-साथ सकारात्मक सूचना संप्रेषण के प्रतीक हैं और दुनिया के पहले पत्रकार भी। समाचार पत्र पढ़ या टीवी देख कर चुप बैठने की बजाय, अगर हम इन विभिन्न मार्गों से अपनी सहभागिता बढ़ाएंगे तो मीडिया का रुख देवर्षि नारद की पत्रकारिता के रुख जैसा समाज एवं मानवता के हित की दिशा में रखने में कारगर साबित हो सकता है। हर एक व्यक्ति को यह पहल करनी होगी। समाज और अच्छे लोगों का छोटा सा प्रयास देश के मीडिया को भटकने से बचा सकता है और उसका उचित मार्गदर्शन कर सकता है।
- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
                                                                      मो. 09779-14324                     

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