Friday, 11 May 2018

'अगस्टा पत्रकार और 'जनमत'

'श्रीमान् ईमानदार प्रधानमंत्री' के नाम से विख्यात स. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली विगत संयुक्त प्रगतिशील मोर्चा की सरकार के कार्यकाल के दौरान हुए रिकार्डतोड़ घपलों की तरह अगस्टा हैलीकॉप्टर सौदे में भी दलाली खाने का समाचार आया  है। दुर्भाग्यवश राजनीतिक क्षेत्र से जुड़े लोगों के नाम घोटालों में आना तो हमारे यहां सामान्य बात हो गई है, परंतु इस घोटाले में एक सनसनी पैदा कर देने वाला रहस्योद्घाटन भी हुआ है कि देश के दो स्वनामधन्य वरिष्ठ पत्रकारों ने भी भ्रष्टाचार के गंदे नाले में पंचस्नान किया है। इन लोगों को कंपनी से 6 मिलियन यूरो डॉलर इसलिए मिले ताकि ये इस सौदे का गुणगान करके देश में इसके पक्ष में जनमत तैयार करें। वाकई भारतीय पत्रकारिता जगत् के लिए काला अध्याय है यह पटाक्षेप। पत्रकारों द्वारा दलाली खाना गंभीर है, परंतु इससे भी अधिक गंभीर यह है कि किसी विषय को लेकर देश में जनमत तैयार करने के पीछे कैसे-कैसे षड्यंत्र रचे जा रहे हैं। मीडिया का एक वर्ग किस तरह विदेशी कंपनियों की विज्ञापन एजेंसी और मूर्धन्य पत्रकार इन विज्ञापन फिल्मों के नायक-नायिकाएं बन रहे हैं।
बात निकली है तो दूर तक जाएगी। पिछले लगभग दो सालों से मीडिया में कुछ •यादा ही बौद्धिक कलाबा•िायां  देखने को मिल रही हैं। मीडिया ने किस तरह वंचित वर्ग के छात्र रोहित वैमुल्ला की दुखद आत्महत्या और दादरी में इखलाक की निंदनीय हत्या को राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया। मीडिया किस तरह कुछ नेताओं की 'खांसी' को भी 'खासियत' बना कर पेश करता रहा है और एक दल के स्थानीय नेता द्वारा घोड़े की निर्ममतापूर्ण तोड़ी गई टांग के लिए भी उस दल के राष्ट्रीय नेतृत्व की खिंचाई करता आया है। किस तरह मीडिया ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा गिरफ्तार किए गए कुछ लोगों के नाम पर कई सप्ताह तक चौबीस घंटों ब्रेकिंग न्यू•ा-ब्रेकिंग न्यू•ा के नाम पर 'हिंदू आतंकवाद' की रट लगा कर 'राग बदनामी' की सुरसाधना की और अब जब अदालत द्वारा इन लोगों को निर्दोष पाए जाने पर मीडिया उसी राष्ट्रीय जांच एजेंसी को कटघरे में खड़ा किए जाने का प्रयास हो रहा है। उदाहरण बहुत हैं, परंतु प्रश्न एक ही कि क्या उक्त विषयों पर भी हमारे मीडियाकर्मियों ने स्वच्छ पत्रकार की भूमिका निभाई या किसी और द्वारा बनाई गई 'विज्ञापन फिल्म' के 'कलाकार' की।
महात्मा विदुर ने कहा है कि ''विष केवल पीने वाले को मारता है और शस्त्र केवल उसी की जान लेता है जिस पर इसका प्रहार किया जाए, परंतु गलत विचार व गलत परामर्श राजा के साथ-साथ देश व उसकी प्रजा को भी नष्ट कर डालते हैं।'' आखिर किस तरह की देशसेवा कर रहा है हमारे मीडिया का एक वर्ग। पत्रकारिता लोकतंत्र की आंख है और खबरपालिका ही न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधानपालिका की खबर ले सकती है। पत्रकार का दायित्व है समाज में स्वस्थ जनमत तैयार करना और सत्ताधीशों को सजग रखना। अगर यह काम किसी प्रकार के प्रलोभन में आकर करेंगे तो पत्रकार खुद ही अपना स्तर 'भाण्ड' होने तक गिरा लेंगे।
प्रश्न पैदा होता है कि आप और हमारे जैसे साधारण व्यक्ति के लिए मीडिया की इस विसंगती का सामना करने का क्या उपाय है। हम साधारण लोग समाचार पढ़ या सुन या टीवी चर्चाएं सुन कर उन्हें ही सत्य मान लेते हैं। इस संबंध में सुझाव है कि हम किसी भी समाचार या सूचना को अपने विवेक की कसौटी पर अवश्य परखें। अपने ज्ञान, अनुभव, जानकारी के आधार पर हर सूचना को कसें। कहने का अभिप्राय: यह भी नहीं कि मीडिया के प्रति अविश्वास या संदेह का भाव रखें बल्कि जरूरी यह है कि अगर कोई चांद का काला कहे तो इतना अवश्य विचार करें कि चांद काला नहीं हो सकता या कोई कह दे कि आपका कान कौवा चुरा कर ले गया तो कौए के पीछे भागने से पहले अपने कान को अवश्य छू कर देख लें कि वह अपने स्थान पर है या नहीं। किसी समाचारपत्र या मीडिया की जानकारी संदेहास्पद लगती है तो इस संबंध में अपना संदेह किसी न किसी माध्यम से उक्त समाचारपत्र या टीवी चैनल के संपादक तक जरूर पहुंचाएं। इससे न केवल समाज में सत्य तथा तथ्य की स्थापना होगी बल्कि मीडिया का भी लोकतांत्रिकरण होगा।
- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो. 09779-14324

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