1925 से संघ चला, धीरे-धीरे बढ़ता गया। सब प्रहारों के, सब बाधाओं के बावजूद बढ़ता गया। धीरे-धीरे प्रतिकूलता को उसने स्नेह में बदल दिया। आज लोकप्रिय है। जहां जाते हैं वहां समाज का स्नेह मिलता है। विशाल संगठन बन गया है, लेकिन हम इसमें कृतार्थ का अनुभव नहीं करते। हमको अपने को प्रसिद्ध करने के लिए काम नहीं करना था और ना ही कर रहे हैं। आगे बढऩा है। अनुकूलता का समय भी आता है लेकिन अनुकूलता विश्राम के लिए प्रवृत करती है, विश्राम हमको नहीं करना है। परम वैभवम् मेतु तथ्यराष्ट्रम, यह हमारा लक्ष्य है। और उसके लिए सतत कार्यकर्ता निर्माण की जो प्रक्रिया चलती है उसके चलते उस प्रक्रिया को चलाने वाले कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण भी प्रतिवर्ष होता है। तृतीय वर्ष के समापन का प्रसंग प्रतिवर्ष हम यहां अनुभव करते हैं। अपना खर्चा करके साम्पतिक सुस्थिति में ये सब के सब शिक्षार्थी यह सब के सब नहीं हैं। प्रांतों के वर्गों में और यहां के वर्ग में भी ऐसे लोग मिलते हैं जो हजार रुपये शुल्क जुटाना, प्रवास शुल्क जुटाना इसके लिए दो-तीन महीना मेहनत मजदूरी करके पैसा जुटा कर उस पैसे को अपनी भौतिक आवश्यकता के लिए खर्चा न करते हुए वर्ग का शुल्क देकर यह प्राप्त करते हैं। उनको कहीं मिलने वाला नहीं है, वो ऐसा करते हैं इसलिए उनको धन्यवाद भी नहीं दिया जाता। और यह आदत भी लगाई जाती है कि अपेक्षा कुछ मत करो, नेकी करो और कुंवे में डाल दो। वृत्तपत्र में नाम छपेगा, पहनूंगा स्वागत पुष्पहार छोड़ चलो यह क्षुद्र भावना हिन्दू राष्ट्र के तारणहार। तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहें न रहें। ये सीख वो ले गए। यह संस्कार लेते हैं। अपने मन के भाव को पुष्ट करते हैं। तृतीय वर्ष में आते हैं तो आज तक जो पुस्तकों में पड़ा था, बौद्धिकों में सुना था, इधर-उधर से सुन रहे थे, उसकी प्रत्यक्ष अनुभूति ग्रहण करते हैं।
- राकेश सैन
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जालंधर।
मो. 097797-14324
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