कार्य कोई भी सम्पन्न होता है तो शक्ति के आधार पर सम्पन्न होता है। किसी भी कार्य को करने के लिए शक्ति चाहिए। यह जीवन का नियम है, विज्ञान सिद्ध नियम है। और शक्ति संगठन में होती है, सब के मिलकर काम करने में होती है। और शक्ति को अगर शील का आधार नहीं रहा तो वह शक्ति दानवी शक्ति बनती है। अच्छी बातों का उपयोग बुरे कामों में होता है। विद्या विवादाय, धनम् मदाय, शक्ति परेशाम, परपीडऩाय। विद्या प्राप्त लोग विवाद में समय गवांते हैं सहमति नहीं बनाते। विद्या के आधार पर सहमति बननी चाहिए। लेकिन विवाद चलते हैं। धनपति लोग धन के मद में चूर हो जाते हैं। धन का वो उपयोग नहीं है। और शक्ति दूसरों की सब बातों की इच्छा करना और दूसरों को पीड़ा देना वो प्राप्त करने के लिए इसलिए करती है। यह कौन करती है, दुष्ट लोग करते हैं। खलस्य। विद्या विवादाय, धनम् मदाय, शक्ति परेशाम परपीडऩाय खलस्य, साधो: विपरीत मेतत। सज्जनों की गति उलटी चलती है। ज्ञानाय, दानाय, दक्षणाय, विद्या का उपयोग समाज में ज्ञान बढ़ाने के लिए करते हैं, धन का उपयोग दान में करते हैं और शक्ति का उपयोग रक्षण के लिए करते हैं। दुर्बलों का रक्षण करते हैं। शक्ति को शील का आधार चाहिए, बिना उसके अनियंत्रित शक्ति यह खतरे वाली बात है। और इसलिए उस शक्ति की उत्पति, उस शील की उत्पति समाज की आज की स्थिति में, सब संकटों से, समस्याओं से उबार कर समाज श्रेय का मार्ग चलने लगे ऐसे ज्ञान की आराधना, सब परिस्थितियों में अपनी तपस्या पर अडिग रहने के लिए वीर व्रत की आराधना। और सब प्रकार के मोह आकर्षणों से, कष्टों से गुजरते हुए भी अपने ध्येय को कभी ओझल न होने वाली, उलटा अधिकाधिक ध्येय प्राप्ति की उत्कंठा उत्पन्न करने वाली ध्येय निष्ठा, इन पांच गुणों की आराधना संघ की शाखा में स्वयंसेवक करते हैं। एक घंटा यह सारे अपने तन मन में कार्यक्रम करते हुए अंत में जो प्रार्थना करते हैं भारत माता की उसमें प्रभु से इन्हीं पांच गुणों का वरदान मांगते हैं।
- राकेश सैन
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वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो. 097797-14324
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