Tuesday, 26 June 2018

कैप्टन सरकार का गौशालाओं पर वज्रपात

पंजाब में पहले से ही आर्थिक मंदी में आकण्ठ डूबी गोशालाओं पर कांग्रेस के नेतृत्व वाली कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार ने माफी के बावजूद बिजली के बिल भेज कर उन पर वज्रपात सा कर दिया है। इससे राज्य में चल रही लगभग पौने पांच सौ गऊशालाओं के सामने भयंकर संकट पैदा हो गया है और कई गौशालाएं बंद होने की कगार पर पहुंच गई हैं। इन गौशालाओं में लगभग तीन लाख बेसहारा गौवंश शरण लिए हुए है और अगर कांग्रेस सरकार ने अपनी गलती में सुधार न किया तो यह पशुधन सड़कों पर आने को विवश हो सकता है। दुर्भाग्य की बात है कि कांग्रेस सरकार जनता से तो गौ कर (काऊ सैस) वसूल रही है परंतु इसको गायों पर खर्च नहीं किया जा रहा है। राज्य की निवर्तमान अकाली दल बादल व भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने पंजाब की गौशालाओं को नि:शुल्क बिजली की व्यवस्था की थी परंतु कर इक्ट्ठा करने के बावजूद कांग्रेस सरकार गौशालाओं को बिजली के बिल भेज रही है। राज्य सरकार की इस हरकत से जहां लोगों में रोष पाया जा रहा है वहीं सरकार के इस कदम को सीधे-सीधे आफत को निमंत्रण के रूप में देखा जा रहा है। जानकारों का कहना है कि पहले से ही आर्थिक परेशानियों का सामना कर रही गौशालाओं पर आर्थिक बोझ डाला गया तो इससे बहुत सी बंद हो सकती हैं और इसका गौधन फिर से सड़कों पर जीवन यापन करने को विवश हो जाएगा। बेसहारा पशुओं के चलते दुर्घटनाओं व फसलों का नुक्सान झेल रहे पंजाब में इससे समस्याएं बढ़ेंगी ही।

पंजाब के वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार द्वारा आम जनता से गौ कर के जरिए लगभग 50 करोड़ रुपए इक_े किए जा चुके हैं, वहीं पंजाब स्टेट पावर कार्पोरेशन लिमिटेड पिछली अकाली-भाजपा सरकार द्वारा गौशालाओं को दी गई नि:शुल्क बिजली की सुविधा को बंद कर मार्च 2017 से आजतक के बिजली के बिल भेज रहा है। केंद्रीय राज्य मंत्री विजय सांपला ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर को याद करवाया कि गौ सेस के माध्यम से इक_ा किया गया पैसा गौ सेवा में ही लगाया जा सकता है। जब पावरकॉम बिजली बिलों पर गौ सैस लगाकर लगभग 8 करोड़ रुपए इक_ा कर चुका है तो फिर पंजाब की लगभग 472 पंजीकृत गौशालाओं को 5 करोड़ 32 लाख के बिजली बिल सरकारी योजना के अनुसार माफ करने के बावजूद क्यों भेज रहा है। पंजाब सरकार बिजली बिलों पर गौ सैस लगाने के साथ चौपहिया वाहन खरीदने पर एक हजार रुपए, दोपहिया वाहन खरीदने पर 500 रुपए, मैरिज पैलेस का एसी हॉल बुक करने पर एक हजार रुपए और नॉन एसी हॉल बुक करने पर 500 रुपए, सीमेंट की प्रति बैग एक रुपए, भारत में बनी विदेशी शराब पर प्रति बोतल 10 रुपए और बीयर व पंजाब में बनी देसी शराब की प्रति बोतल पर 5 रुपए, तेल टैंकर पर 100 रुपए गो सैस वसूल रही है।

देश के अन्य हिस्सों की भांति कृषि प्रधान राज्य पंजाब में बेसहारा गौधन की समस्या उस समय पैदा होनी शुरू हुई जब खेती का लगभग सारा कामकाज मशीनों से होने लगा। रही सही कसर राज्य सरकारों की दुग्ध नीति ने पूरी कर दी। राज्य में दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए कथिततौर पर श्वेत क्रांति के नाम पर विदेशी नस्ल के होलस्टीन व जर्सी गौवंश का अंधाधुंध आयात किया गया। विदेशी नस्ल की यह गायें दूध तो ज्यादा देती हैं परंतु इनकी दूध देने की अवधि चार-साढ़े चार साल तक ही होती है जबकि देसी नस्ल की गायें लगभग सारी उम्र दूध देती हैं। पश्चिमी देशों की संस्कृति के अनुसार विदेशी गायों से दूध लेने के बाद इनके मांस का प्रयोग साधारण बात है परंतु आस्था के चलते भारत में ऐसा संभव नहीं। इसका परिणाम यह निकला कि तीन-चार सालों के बाद जब यह गायें दूध देना बंद कर देती हैं तो पशुपालक इनको छोड़ देते हैं। इन विदेशी नस्ल के पशुओं से राज्य की जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। प्रदेश में हर रोज कहीं न कहीं इन पशुओं के चलते दुर्घटनाएं होने के समाचार मिलते रहते हैं और किसानों को रात-रात भर जाग कर अपने खेतों में पहरेदारी करनी पड़ती है। इन पशुओं के दूसरे क्षेत्रों में हांकने के चलते कई बार गांवों में तनाव भी फैलता रहा है।

इस समस्या से निपटने के लिए निवर्तमान मुख्यमंत्री स. प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाली सरकार ने जहां गौसेवा बोर्ड का गठन किया वहीं गौशालाओं को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए उन्हें नि:शुल्क बिजली व पानी की सुविधा दी गई। सरकार पर इस सेवा का बोझ न पड़े इसके लिए बकायदा मंत्रिमंडल में प्रस्ताव पारित कर गौ सैस लगाया गया। इस व्यवस्था के पहले कुछ साल तो सबकुछ ठीक चला परंतु राज्य में सत्ता परिवर्तन होने से कांग्रेस के नेतृत्व में कैप्टन अमरिंद्र सिंह की सरकार का गठन हुआ। वर्तमान सरकार आरंभ से ही आर्थिक संकट के दौर से घिरी नजर आने लगी थी जो अभी तक उबर नहीं पाई है। राजनीतिक कारणों से चाहे कांग्रेस सरकार किसानों से निशुल्क बिजली की सुविधा वापिस लेने के बारे में फैसला लेने से घबराती है परंतु सरकार ने गौशालाओं से बिजली के बिल वसूलने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। बता दें कि राज्य में 472 पंजीकृत गौशालाएं हैं जिनमें लगभग 3 लाख गौवंश शरण लिए हुए है। इनका संचालन सामाजिक संगठनों, धार्मिक संस्थाओं व पंचायतों द्वारा किया जा रहा है। इनकी अधिकतर आय का साधन दानप्रेमी जनता से मिलने वाली सहायता ही है। दूध सुखा चुकी विदेशी नस्ल की गायों से भरी यह गौशालाएं पहले ही आकंठ आर्थिक मंदी के बोझ तले दबी हुई हैं और अब सरकार ने 5.32 करोड़ के बिजली के बिल भेज कर इनकी कमर तोड़ कर रख दी है। अगर इनमें से कुछ गौशालाएं भी बंद हो जाती हैं तो वह राज्य में पहले से ही मौजूद बेसहारा पशुओं की समस्या को लेकर कोढ़ में खाज का काम करेगी। यह बात समझ के बाहर है कि जब प्रदेश की जनता इन गायों व गौशालाओं की देखभाल के लिए अपनी जेब से कर दे रही है तो कांग्रेस सरकार किस आधार पर गौदान की अमानत में ख्यानत कर सकती है। 
- राकेश सैन
32, खण्डाला फार्मिंग कालोनी,
वीपीओ रंधावा मसंदा,
जालंधर।
मो. 097797-14324

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